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"अणसार" (गुजराती उपन्यास : वर्षा अडालजा) अनु. कन्हैयालाल भाटी
संस्करण : 14 जनवरी, 2013 / पृष्ठ : 320 / मूल्य : 150/-
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर



बीकानेर / 14 जनवरी / अनुवादक अगर खुद रचनाकार हो तो उसके अनुवाद-कर्म की सार्थकता रचना के मर्म मंज देखी जा सकती है। अनुवाद महज भाषाओं में शब्दों का बदलना नहीं होता। अनुवाद की दोहरी जिम्मेदारी होती है। अनुवाद-कार्य सरल नहीं वरन बेहद कठिन कार्य इस रूप में होता है कि अनुवादक दो भाषाओं के बीच जो पुल बनाता है उसके द्वारा सदियों तक भारतीय समाज की सच्चाइयां देखी-समझी और परखी जाती है। उक्त उद्गार राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के अध्यक्ष राजस्थानी कवि-संपादक श्याम महर्षि ने अकादमी कार्यलय में साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था “मुक्ति” द्वारा आयोज्य स्व. कन्हैयालाल भाटी की पुण्य-तिथि पर वर्षा अडालजा के गुजराती उपन्यास के राजस्थानी-अनुवाद के लोकार्पण-समारोह में व्यक्त करते हुए कहा कि भाटी राजस्थानी साहित्य में एक मौलिक कहानीकार और अनुवादक के रूप में सदैव याद किए जाएंगे। “अणसार” उपन्यास के माध्यम से स्त्री-विमर्श पर गुजराती साहित्यकार वर्षा अडालजा का दृष्टिकोण इस कृति के माध्यम से जाना जा सकता है।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रख्यात कहानीकार-व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कहा कि कन्हैयालाल भाटी साठोत्तरी साहित्य के रचनाकार और अनुवादक कहे जा सकते हैं। बीकानेर शहर में रहते हुए उनका अनुवाद कार्य देश की प्रसिद्ध पत्र-पत्रिकाओं में वर्षों से प्रकाशित होते रहे। साथ ही वे मौलिक कहानियां भी निरंतर लिखते रहे। डॉ. नीरज दइया के संपादन में प्रकाशित “कन्हैयालाल भाटी री कहाणियां” द्वारा वे समर्थ राजस्थानी कहानीकार के रूप में पहचाने गए हैं तो निश्चय ही आज लोकार्पित गुजराती उपन्यास के राजस्थानी अनुवाद “अणसार” के बाद उनका पृथक मूल्यांकन हो सकेगा।
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति के सचिव पृथ्वीराज रतनू ने कन्हैयालाल भाटी के संस्मरण सुनाते हुए उनके साथ बीताए जीवत पलों को साझा करते हुए कहा कि वे कैंसर की बीमारी में जितने अदम्य उत्साह के साथ संघर्ष किया वह बेमिशाल है। भाटी का जीवन जीवट जिजीविषा से भरपूर रहा।
कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया ने कन्हैयालाल भाटी के अबदान पर बोलते हुए कहा कि वे साहित्य समाज में एक रचनाकार, अनुवादक और साहित्य मर्मज्ञ के रूप में स्मरण किए जाएंगे। “अणसार” वृहतकात उपन्यास में राजस्थानी भाषा का सरल सहज और प्रभावशाली रूप पाठकों के समक्ष आया है। स्त्री-जीवन की इस महाकाव्यात्मक गाथा में अनेकानेक जीवनानुभव और मर्मस्पर्श सच्चाइयां व्यक्त हुई है।
मुक्ति के सचिव कवि राजेंद्र जोशी ने कहा कि वे साहित्य सामाज में सर्वाधिक लोकप्रिय और सच्चे इंसान थे जिन्होने शिक्षा विभाग की पत्रिकाएं शिवरा और नया शिक्षक में सहायक के पद पर रहते हुए संदर्भ कक्ष में महत्त्वपूर्ण अबदान दिया वहीं अनुवादक के रूप में अनेक गुजराती की पुस्तकों का अनुवाद किया।
युवा कवि हरीश बी. शर्मा ने कहा कि कन्हैयालाल भाटी की मौलिक रचनाओं में गुजराती साहित्य की महक से जहां हम अभिभूत होते हैं वहीं अनुवाद के कार्य में हिंदी-राजस्थानी के भाषा सामर्थ्य को भी देखा जा सकता है। भाटी की साहित्य साधना से युवा रचनाकाओं को अधिकाधिक अध्ययन की प्रेरणा लेनी चाहिए।
मायड़ रो हेलो के संपादक विनोद सारस्वत ने कहा कि कन्हैयालाल भाटी जीवन-पर्यंत एक लेखक और अनुवादक के रूप जीवन जीया और जितना उनका कार्य प्रकाश में आया है उससे कहीं अधिक अभी भी पत्र-पत्रिकाओं में बिखरा है जिसे सहेजन की आवश्यकाता है।

स्व. कन्हैयालाल भाटी के पुत्र योगेंद्र भाटी ने धन्यवाद दिया तथा कार्यक्रम का संचालन राजेंद्र जोशी ने किया।

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