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लाडेसर

चित्र : नवीन अमीन
‘ओहो ! कांई बात है !’ मोहनी चाय रो कप श्याम रै सामै राख्यो, जणा बो बोल्यो:

       ‘मेम साब, आज थे म्हांसूई पैली आयग्या।’

       हां कैवती मोहनी श्याम रै कनै ई सोफै पर बैठगी।


       ‘आज दफ्तर में काम थोड़ो हो कांई ?’ चाय रो गुटको लेवतां उण पूछयो के फेरू छानै-छानै गोच मनायगी। मोहनी रै मूंडै माथै हंसी आय‘र छूमन्तर हुयगी।

       ‘भाई म्हारै जिसा घणाई मिनख जाणै है कै दफ्तर मांय काम करण आळी कुंवारियां अर सुहागण्यां साचौ साच कितरो अर किंया काम करै है ......, कैवतो श्याम मुळकर चुप होग्यो।

       श्याम आछी तरह सूं जाणतो हो के हंसी-मजाक खातर घरआळी नै चिड़ायर आनंद लेवणो हुवै, जद कियां बोलणौ चाइजै। इणी खातर तो बो मोहनी सूं हेत री बात छेड़ी ही। पण आज रोजीना दांई मोहीनी चिढ़र पडूŸार हमला नीं कर सकी। जणा वो इचरज मांय भर‘र आपरी कानी जोवतो बोल्यो-

       ‘अरे, कांई हुयो। आज इती उदासी कियां है ?’

       ‘आज गीगलो घणोई रोयो।’

       अ हो हो हो ...... बो जोर सूं हंस्यो। बोल्यो: बस आई बात है कंई ?

       म्हैं भोत कोसिसां करी पण बो चुप रैयोइज नीं अर धाँय रै लेवतां ई फट चुप होग्यो।

       थू हीं कांई बात करै है मोहनी-कैयर चाय रो खाली कप मेज माथौ राख्यो। बोल्यो ‘अरै आई म्हनै समझावणों पड़सी कई के छोटा टाबर तो इस्याई हुवै। जिकै में बो आपांरो घणो लाडेसर है। जिरै सागै रैवै उण सूं घणो हेत हुय जावै। उण सूं ईंयां ही हिलमिल जावै।

       हां पण आपणो लाडेसर धांय सूं घणो हिलमिलग्यो है। बो म्हनै तो जाणै-पिछाणै ही कोनी।

       इयां तो हुवै है। म्हैं कैवूं हँू नीं के बो अबार टाबर ही तो है। कदैई-कदास इंयाई करण लाग जावै है।

       कदैई-कदास ई नीं घणीबार इयां ही करै। श्याम एक बार म्हैं धांय नै गऊं पिसावण खातर भेजी। उणनै पाछी आवण मांय थोड़ो बखत लागग्यो। इण बीच ओ थारो लाडेसर रो-रो-र आरडै़ चढग्यो पण जिंयां ई उणनैं धांय दीखी के फट चुप होग्यो। धांय रै हैले रै सागै हंस-हंस‘र किलकार्यां अर ताळियां पिटण लाग्यो। बो पछै वारै सागै रमण ने लागग्यो। जियां उण रै तो कीं नीं हुयै है। अबै बो घरां मांय धांय नै नीं देख‘र बियांई रोवण नै बैठ जावै जाणै धांय उणरी मां है।

       अरे, इतरी चिंता करण री कांई बात है ?

       म्हैं जाणू हूं के आ बात थारी समझ में नीं आवै।

       लो, इण में समझण आळी कांई बात है। अबार ओ थारो लाडेसर छोटो है, अणसमझ है। आखै दिन धांय सागै रैवै। धांय ही इणनै हेत सूं रमावै, जिमावै अर आपरै साथै ई सुवाणै, बा बीरी टट्टी-पेषाब साफ करै, इण खातर सुभाव सूं बो उण सूं हिलमिलग्यो।

       ‘आई बात तो म्हनै अखरै है।’ वा बोली।

       ‘थोड़े बखत पछै थनै अखरी-सी कोनी। फैरूं समझण लागसी तो आपई-आप पिछाणसी के आ म्हारी मां है अर अै म्हारा पापा है।’

       ‘अर हां मोटो होय नै आपां नै पिछाणसी आ तो बात ठीक है पण धांय सूं घणो जिŸाौ हेत करै बितो घणौ हेत आपा सूं नी करैला। आ म्हारै मन में संका है। वा कैयो।

       ‘देखो मोहनी थूं हद सूं ज्यादा भावुक होयर फालतू री चिंता करै आ म्हारै जचै कोनी।’

       ‘थारै जचै या नीं जचै श्याम पण म्हनै तो इण बात रो घणो दुःख है।’

       ‘तो थूं एक म्हारो काम करसी। थूं थारो बतै सूं बतौ बखत लाडेसर रै साथै बीताय। इण सूं धांय री दांई बो थांसूं हिलमिल जासी। पण निगै राखणी पड़सी के जद तांई इंया है थू उथपै नीं। बोल अबै थूं कैवती ही के अेकाध दिनां में म्हैं भुआजी रै घरां चालसां तो ले आज ई चालां।’ श्याम बोल्यो।

       ‘कोनी। थानै जावणो है तो जावो परा।’

       ‘ऊं हूं। आपणी मोहनी रै बिना कठैई जावणो आछो नीं लखावै।’ इतरो कैवण खातर श्याम इयां ई सोचै हो पण मोहनी कीं नीं बोली।

       ‘तो घणा दिनां सूं सतरंज नीं खेली, चाल खेलां।’

       ‘कोनी।’ कैवती बा उठी अर लाडेसर खेलै हो बठै जाय पूगी जद श्याम कांधा उचकावतो मांय ई मांय बड़बड़ावण लाग्यो के ‘घणो सोचण-विचारण आळो’ मिनख इण दांई दुःखी हुवै। अर फेरूं ‘पोथ्यां री अलमारी’ मांय सूं एक सोहणी पोथी निकाळ‘र भणन वास्तै सोफै माथै जाय‘र पसरग्यो।

       मोहनी नै मन में धारली के म्हारो बŸो सूं बŸाो बखत लाडेसर रै साथै ई निकाल सूं। इण फैसलै सूं उणरै दुःखी अतंस मांय कीं ठण्डक पूगी।

       बां धांय नै कैयौ के आज सूं म्हारै लाडेसर रो पालणो म्हारलै कमरियै मांय मेल दियै। रात में थनै इणरै साथै रातीजोगो करण री जरूरत नीं है।

       ‘पण बाईसा, सुवारै थांनै काम माथै बेगो जावणो पड़ै जद इयां रातीजोगो ....’

       ‘म्हैं कर सूं। थूंई तो करती ही, फेरूं काम रै वास्तै थूं ई तो सुवारै बैगी उठ जावै अर थनै रातीजोगो नीं लखावै।’

       ‘म्हारी तो बाईसा आ रोजीना री आदत पड़गी।’

       ‘तो म्हैं ई इणी दांई बण जासूं।’ बा कह्यो।

       पण मोहनी नै लखायौ के उण नै धांय री दांई होवण री खातर घणो ई बखत लागसी।

       धांय नै लाडेसर रै मांय राजासाही आदत घाल दीवी। घणो ही लाड सूं अर इतरै ही धीरज सूं बा काम लिया करती। मोहनी धांय री इण आदतां नै आछी तरै सूं जाणती ही, पण सुवारै उण रै कनै बखत री घणीज तंगी रैवती। सगळा काम-काज बैगा-बैगा सलटावणा पड़ता। इण हालतां मांय उण नै तय कर्यौ के हमेस सुवारै लाडेसर री देखभाळ बा ई करसी, घर रसोई आळो काम धाय, पण खुद नै बा आ आछी तरै सूं सुफल नीं बणा सकी।

       धाय लाडेसर नै मना-फुसला‘र उण रै सरीर माथै मालिस करती बियां ही मोहनी उण रै मालिस करण री कोसिस करी तो राजी हुवण री जगा बो तो रोवण लागग्यो। मोहनी उणने चुप करावण वास्तै घणी ई माथाफोड़ी करी पण बो तो बोलौ रैयौ नीं। फेरूं ई धीरज राखर लाडेसर नै सिनान-सपाड़ो करायो पण इणी बीच में बो रो-रो नै आपरी ऐड़ी हालत बणाई के मोहनी रो हिवड़ो बळन लागग्यो। बा थोड़ी‘क निस्त हुयग्यौ। हड़बड़ार लाडैसर नै पकड़ा दियो।

       जाणै जादुरी छड़ी लगी है बियांई धाय कनै जावतो झटदेणी चुप हुयगो। मोहनी रै आ बात सूळ ज्यूं चुभगी। पण लाडैसर नै हंसतौ-खेलतौ देख‘र उण नै अणूतो आणंद हुया अर बेगी-बेगी दफतर जावण री त्यारी करण लागगी। फेरूं ही मोड़ो तो होग्यो। लाडेसर उणरो घणोई बखत खराब कर दियौ। फेरूं ही मोड़ो तो होग्यो। लाडेसर उणरो घणोई बखत खराब कर दियौ। फेरूं तो इसा अवसरां माथै उणनै आपणै अफसरां रा मोसा सुणना पड़ता। पण मोहनी नै इणरी घणी पीड़ा नी होवै।

       सिंझ्यारां बा बेगी-सी दफतर सूं आई अर लाडेसर नै फिरावण सारू रोजीना ले जावै। बारली दुनियां री चैल-पैल पर आकर्षण लाडेसर ताई घणोई हो। अर बारै रैवतो जठै तांई तो आछो है पण घरां आवतां ई धाय कनै जावण नै उतावळौ हो जावै। मोहनी उणनै आपरै कनै राखण री घणीई कोसिसां करै पण बो तो जोर-जोर सूं बोकाड़ा मारै अर उणनैं नीं छोणडरी मन हुवै तोई धाय कनै जावण देवै।

       मोहनी री आ हालत देख‘र श्याम कदै-कदास साथ देवै। कदैई कर लेवै अर कदैई आपरी जोड़ायत माथै रीस काढ़ै। एक दिन श्याम नै प्रस्ताव राख्यौ।

       ‘मोहनी।’

       ‘हां।’

       आपां चार दिनां री छुट्टी लेल्यां, फेरूं सनि, अदीतवार अर दूसरा दो तिंवारा री छुट्टयां साथै ई पड़सी, इण में आपां नै पूरौ हफतो मिलै है। म्हारै विचार सूं इण छुट्टियां मांय किणी पाड़ी ‘ठेसण’ माथै घूमणनै चालां।

       ‘जरूर चालसां पण धाय नै साथै नीं लेवांला उणनै अठैई छोडसां। बां अठैई रेवै तो ठीक है नीं तो बा आपरै घरां चली जावै।’

       ‘ठीक है थारै जचै जियां कर लीजै।’ श्याम बोल्यो ...... अर लाडेसर रै साथै दोन्यू आबू रै पहाड़ी ऊपर गया परा। मोहनी उछाह मांय भर‘र लाडेसर नै सागै लियो अर श्याम रै सागै घूमण नै निकलगी।

       ‘बठीनै.....देख बेटा, देख, लाडेसर री निजरां अेक कानी ले जावण रो जतन करती बा बोली ‘किसीक फूठरी चिड़कली है। बा.... उड़गी। देख बो सुओ बैठो। पकड़-पकड़ बो ..... उड़ग्यो.....’ मोहनी इयां बोलती रैई पण लाडेसर मोहनी री ऐड़ी उछाहभरी कोसिस नै खाली देखतो रैयो अर थोड़ीक ताळ बाद बिना कारण ई जोर-जोर सूं रोवण लागग्यो। उणनै बोलौ राखण खातर मोहनी अर श्याम नै घणीज मुसीबतां उठावणी पड़ै।

       अंधारो होवतां-होवतां दोनूं जणा होटल मांय आया तो लाडेसर फेरूं रोवणों सरू कर दियो। मोहनी उणनै दूध पावण री कोसिस करी पण बो तो आपरो मूंडौ इज फेर लियो। दोनूं लाडेसर रै सामै घणाई रमतियां निकाळ‘र उणनै राजी करण री कोसिस करी पण बो रोवंतो ई रह्यौ। उणनै होटल रै चोगान आगै हिन्डै माथै बैठाय‘र दोनूं सागै हींडण लाग्या पण बो चुप नीं हुयो। इण वास्तै उणने लेय‘र किŸाी ताळ तांई चौगान में घूमता रैया। जद बो रोवतो-रोवतो थांक ग्यो तो उणनै नींद घेर लियो। पण बो नींद में ई डुसक्यां भरतौ रैयो। दिनूगै ई उणनै ताव चढ़ग्यो तो दोनूं जणां सोच मांय पड़या। दोनूं ई उणनै मोड़ो कर्यां बिना डागदर रै कनै लेग्या। उणरी बीमारी रै कारण री बिणानै पैलां स्यूं ही संका ही। थावस रै खातर बां धाय नै दौ-तीन हेलौ पाड़ती कैयो-

       ‘धायजी अठै आया तो .....’

       धाय रौ नाम सुणतै ई बो चुप होग्यो। धाय नै देखण खातर बो बार-बार आंख्या फाड़ी पण धाय नै नीं देख‘र बो तो फेरूं होठ काढ़र डुसक्या भरण लाग्यो।

       मोहनी अर श्याम रै समझ में आयो के धाय री जुदाई लाडेसर नै दुःख दे रई है। इणी खातर बै आठ दिनां सूं पैलां ही घरां पूगग्या।

       धाय घर मांय ई ही। उण नै देख‘र लाडेसर अणूतो राजी हुयो। जद मोहनी बोली।

       ‘अबै सबसूं बडो ओ ई तरीको है श्याम। म्हैं धार लियो है।’

       - किण बात रो ?

       - नौकरी छोडण खातर।

       - क्यूं ?

       - हां, म्हैं नौकरी छोडस्यूं।

       - पण क्यूं ?

       - लाडेसर रै सागै घरां रैवण खातर।

       - ओ हो, जद तो म्हनैं इण नै आपणौ बणावण खातर नौकरी छोड़‘र घरां ई रैवणो चाइजै, क्यूं ?

       - म्हैं मजाक नीं करूं श्याम।

       तो अबै ‘अजमार’ देखलै मोहनी। नौकरी छोड़सी तो आपांरी आमदनी में कितो हरजानो उठानो पड़ैला। इतौ थनै ध्यान है।

       ‘है श्याम, म्हनै ध्यान है आपणी आमदनी थोड़ी होसी पण कीं तो बती होसी। थे समझो क्यूं नीं। फेरूं ही बै आपरी मां रो दरजो नीं गंवायो। बै सैंग ही सुखी है।

       हरेक मिनख आपरै सुख री व्याख्या जुदै-जुदै तरीके सूं करै। म्हनै तो इसौ लखावै के इसी सैंग मांवा आपरी अतृप्त बेचैनी नै हिवड़ै मांय दबायर समय रै सागै मेळ-मिळाप कर लेवै।

       ‘पण थूं तो कोई मेळ-मिलाप नीं चावै। पण नौकरी छोड़णी चावै है।’

       ‘हां’-वा बोली।

       लुगायां रै मांय जिकी सुभाविक इरस्या भावना हुवै, कठै उणनै ध्यान राखतां थूं धाय नै निकालनी चावै, आई बात है नीं ?

       ‘म्हारै होवतै थकै कोई दूजी लुगाई म्हारै लाडेसर री संभाळ करै अर आपणो घर अर जीवण संभालै आ म्हनै आछी कोनी लागै। म्हनै तो सही अरथ में समरपित मां अर गृहणी बणनो है।’

       ‘जाण बूझर कठिनाई सूं भरयो जीवण लेर म्हनै दुःखी करणौ चावै।’

       ‘मा...फी चावूं श्याम, थूं सांति सूं सोचर म्हनै समझण री कोसिस कर।’

       ‘सांति सूं सोचणरी तो थनै जरूरत है।’

       म्हैं सोच लियो के थे जद इण भांत सूं समझ सकै के आमदणी थोड़ी होवता थकां ही आपां इण मुसीबतां रो सामनो कर लेसां तो म्हैं इस्यो काम नी होवण दूं। थानै ध्यान हुवैला के म्हैं कसीदै रो काम जाणू हूँ। घरां मांय रैय‘र ओ काम करसूं घर-आमदणी नै थोड़ी नीं होवण दूं।

       म्हरौ तो ओ सोचणो है। पण धाय री छुट्टी, कर घर सी सगळी जिम्मेदारियां, लाडेसर रो लालण-पालण अर ओ कसीदै रो धन्धो इण तीनां रो भार थूं अेके साथै आछी तरै नीं उठा सकैला।

       म्हां लुगायां नै तो इस्यौ भार उठावण खातर भगवान रो वरदान मिल्योड़ो है, श्याम, इनै नीं भूल। आपणी स्थिति सूं सुखी लुगाई ही, इण संसार रै आखै भार ने हंसती-हंसती झेल सकै अर इणनै ही थूं जाणै नीं है, थनै आई ध्यान नीं है। के म्है एक मां री लिलरया। इणी खातर गायी जावै के बा खुद ही घणी दुःख नै झेल‘र आपरै लाडेसर री देखभाळ करै। म्हारै माथै थोड़ो नेचौ तो राख।’ कैवती बा रीस अर चिढ स्यूं भरोड़ी आपरै पति रै खान्धै माथै हाथ धर देवै। मोहनी नेह सूं श्याम नै घणी देर ताईं निरखण लागगी। पछै बा बोली: आपां सगळा रै सुख रै खातर ई म्है सोच-समझ कर ही आ धारी है। जीवन में घणी कीमती चीज हांसिल करण खातर हूं त्यार हूँ। पण थानै अर लाडेसर नै दुख देय‘र की नीं करूलां। जो कीं करूं था दोन्यूं नै सुखी करण रै खातर ही करूं हूँ। इतरो तो नेचो है नीं म्हारै माथै।

       मोहनी अगलै दिन सूं ई लांबी छुट्टी ले ली ही।

       बां धांय सूं बोली -

       देखा धाय म्हैं नौकरी छोड़ दी है। अबै घरां मांय ई रैयसूं। इण खातर थांरी म्हनै जरूरत नीं हुवैली। पण थैं चिंता नीं करोला। म्हैं थारै तांई एक आछी जागा जोय राखी हूँ। पैली तारीख सूं थांनै नुंवी जागा माथै पर काम पर जाणो है।     

       ‘नुंवी जागा ? नीं बाईसा म्हैं अठै ई ठी हूँ।’

       ‘अरै गैला, पण अबै अठै थारी जरूरत नीं है।’

       म्हनै एकली विधवा नै पइस्या-टका नीं चाइजै बाईजी पण थे म्हनै इयै लाडेसर सूं दूर मत करो।

       मोहनी सूनी हुयोड़ी बीरैं सामी ताकती रैयगी। पछै बा बोली।

       ‘धाय।’

       ‘हां बाईसा म्हैं पईसा रै बिना जीवन गुजार लेसूं। पण ईं हेताळू सूं दूर नीं रैय सकूं। म्हनै की नीं चाइजै। खाली घर मांय कियां ई पड़ी रैवण दो। रैवण दो नीं बाईसा ? आंसू सूं डबडबाईज्योड़ी आंख्यां ऊंची उठावती धाय बोली।

       मोहनी कीं नीं बोल सकी। धाय नै की पडूŸार दियै बिना ई बा दूजै कानी गई परी।

       सिंझ्यांरा जद श्याम घरां आयो जद मोहनी बोली।

       ‘ष्याम, म्हैं म्हारो इरादो बदळ दियो है।’

       ‘कांई ?’

       ‘म्हैं नौकरी नीं छोडूंला ?’

       ‘पण इतरी लांबी लड़ाई रै बाद एकाएक हथियार कियां नाख्या।’

       ‘हां, धाय लाडेसर नै छोड‘र जावण नैं त्यार नीं है। दो मावां रै घणै हेत-लाड सूं ओ आपरो लाडेसर बिगड़ियो है। इसूं तो ओ ठीक है के बीरो एक हाथ मांय पालण-पोसण हुवै, आ घणी आछी बात है।

       म्हैं धाय ने ....।

       हां, श्याम होळै-होळै बा लाडेसर री सांचैली मां बणगी जद के म्हैं तो खाली जनम री देवाळ हूं।

       थनै आ दुभान्त समझ आवै है। म्हनै तो आजे ई समझ नीं आयी है।

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