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मुखड़ा अर दरपण

चित्र : नवीन अमीन
मंगळौ अर किसतूरी ब्याव कर‘र आयां जद वैं ईसर अर गंवर दांई लागै हा। बीयां उणरै घरवाळा हेताळूं-बैळी सिघळां आ बात कैह्य रह्या हा। मंगळौ ही इण बांत नै जाणतौ हो कै किसतूरी ही घणी फूंठरी है। वीरौं मोवणौ, मुखड़ौ गौरी चामड़ी, सुआं कैरी नाक, मृगलोचणी आंख्यां, मदमस्त हथणी-सी चाल। किसतूरी आ बांत जाणती ईं कै मंगळौ ही घणौ फूठरौ है-चौवड़ौ कंधां, तेजस्वी ललाट, नसीळी आंख्यां, काजळ री तरै काळा भंवर केसर अर गुळर भांत गुळाबी गाळ।

    पण भायळा-पापैळां तो आ कैवतां हा कै आ तौ उणा‘रै खुद रै रूप री बांत्यां हुवी। ईयां नीं है, अे जद दौनूं सागै बैठ्यां रैवतां, सागै घूमण नै जावतां जणा इणा रै निरखण रौ मजौ कई जुदौ ईं आवतौ। अे दौन्यूं घणां रूपाळा लागता हा।
    अबै वें आपरै उण रूप नै दौनूं साथै-साथै कियां दैखे ? वे दरपण अेक-दूजै ने दैखें, पण वैं दौनूं साथै-साथै दरपण रै सामां जाय‘र खड़ा हौवतां तो दौनूं खिळखिळा‘र हंस पड़तां, पछै मंगळौ किसतुरी रै मगरा मां थाप जमावतौ अर किसतूरी मंगळै रै गाळ पर चुटीयौ भरती, पछै तो वांरौ दरपण-दरपण री जग्है अर रूप-रूप री ठौड़। पण दौनूं सागै हुवतां जणां सांचौ-साच ईं कैड़ा रूपवान, कितां उणां रै भायळां री बोली मां-‘मनमोहणां लागतां हां। इण रै पछै तो वै दौनूं तुरंत ईं अेक सांतरै फोटूं खींचण आळै खनैग्यां। वैं बठै सागै फोटूं खिंच्वाई। इण‘रै पछै वीं फोटूं नै अेक सांतरै फिरैम मांय मंढवाय‘र घरमां जीमण आळी टैबळ रै सामै भींत माथै टंगाय दिनीं, तबी तो उणां नै चेतौ हुयौ।
    तब मंगळौ उण नै आपरै कन्नै बुलाय‘र फोटू आळी तसवीर खानी आंगळी सूं इसारौ कर‘र मुळकतां कह्यौ:
    ‘किसतूरी, थूं कितीं फूंठरी लाग रह्यी है, हां !’
    इण रै पछै किसतूरी ही मुळकती हुवीं मंगळै रीं तसवीर खानीं इसारौ कर कह्यौ:
    ‘अर थैं ?’
    अर पछै दोनूं खिलखिलार हंसण लाग्यां: ‘उण दौनूं ने इयां लागै रह्या हा कै जांणै आजै ईं म्हां अेक-दूंजै नै दैख्यां हौय ?‘ अैया मंगळौ कह्यौ अर किसतूरी ई बांत नै समझग्यी ही।
    ‘आपां दौनूं सागै-सागै, कंई हंसी-मसकरी कर्यां बिणां तो आपां आजै ईं इणनै दैख रह्यां है न ?’’
    पैळां दौनूं कई ताळ तई अेक-दूजै नै, छैकड़ दौनूं उणी तसवीर आळी छब ने निरखतां रह्यां।
    आजै वां तसवीर तो नीं बदळी पण वैं दोनूं तो जियां-जियां बखत बीततौं गियौ बीयां-बीयां वै खुद ईं बदळ्ता गियां। अै दौनूं तो रौबदार अर मनमोहणां उणी बखत लागतां हां, नूवां आवण वाळां, पुराणां बैळी, साथी अर जिकां कम ऊमर आळा हा, उणी बखत सूं इणां नै जौवतां-जौवतां मौटियार हुग्यां वै टाबर-टींगरियां कैया करती ही:
    ‘इण मंगळै अर किसतूरी नै ...’
    ‘इण मंगळै अर किसतूरी भजौई नै .....’ पछै बांत नै पुखतां करणं तांई बौल्यां: ‘कदाच थैं ईंयां नै घणां बरसौं पैळां दैख्यां होय !’
    ‘अे उण बखत ईसर-गवरज्यां जियां लागतां हा।’ आ बांत बुढ़ौडां कैया करतां हां।
    ‘इणां रै सामै आज रा अभिनेतां अर अभिनैत्रियां ईं पाणी भरै।’ ई बांत नै से छोटी उमर आळा कैवतां।
    आ बांत सुण‘र मंगळौ अर किसतूरी जोर सूं हंस्यां करता हां:
    ‘म्हैं तो अबै बूंढ़ी हौग्यी हूं।’ वां आपरी नांटकीयै नंखरै सूं कैवतीं।
    ‘अबै म्हारां ईं माळ झडणं लांग रह्यां है।’ मंगळौ ही आपरै बौ‘ळां माळां नै संवारतौ हुयौ नाज-नखरै सूं कैंवतौं।
    परंतु पछै तां सांचै-सांच ईं दौनूं बूढ़ापै रै घैरे मां घिरतां गियां। किसतूरी री चामड़ी मां झुरियां पडग्यी अर चैरे री चमक फीकी पड़ण लाग रह्यी ही। पण उणरौं मुखड़ौ तो सोहणौ लाग रह्यौ हो, पण वां बिना बŸाीसी वाळी लाग रह्यी ही। उण री चाळ मां फरक पड़ग्यौ, वां बूढ़ी डैणतीं री तरै दिखण लाग्यी। मंगळै रां कांधां अर सीनौ चौड़ौ भळै ईं हो, पण हवै वौं उतरौं आकरसण आळौ नीं लाग रह्यौ हो। उणरी आंख्यां पर चसमौ लागग्यौ। चाहै भळैं ई उबसेळा गाल हुवै पण उणरै गुलाबी रंगी री चमक फीकी पड़ग्यी।
    पर इण‘री अैड़ी दसा बखत रै फैर सूं हुग्यी ही। मंगळौ अेक समाजसेवी हो। उण नै आपरै काम सूं अेक पळ री ई फुरसत नीं मिळती ही। किसतूरी ई घर रै काम-काज मां इति रूधौड़ी रैवती के उणनै अेक पळ ई आराम करणै रौ बखत नीं मिलतौ। मंगळ रै काम करण वाळा संगी-साथी समाजसेवी, भाई-बहणौं अर ...... अर गांव रै सेवा निरवत लौगां सूं उण घर रो आंगण सूरज रै उगतै ई मिनख अर लुगायां सूं भर जायां करतौं हो। वौं इयै माहौल मां बिचारौं भूतकाल रै बखत नै कठै सूं संभाळतौ कै अपणै ज्वळंत याद वाळै उण फोटूं नै कियां दैखण बैठतो ?
    उणरौ वौ फोटूं तो बीं भींत माथै ज्यूं रौ त्यूं, बिना दैखें ईं टंग्योड़ो रह्यौ।
    बींरां साथी हेताळूं, बैली अर नुवां युवक-युवतियां अैड़ी बांत नीं ही कै वैं उण रै बारै मां बात्यां नीं करतां हुवैळां।
    ‘म्हां इण मंगळै नै बरसौं सूं दैखतां रह्यौ है। इरै तो बस काम ईं काम रेवै है। इणं नै तो अेक पळ री ई फुरसत नीं है।’
    ‘अर आ किसतूरी ! इण री छिंयां जिसी छिंयां ईं इरै लारैं-लारैं नीं फिरै पण आपरै घर रै काम-काजमां उळझौड़ी रैवती अर आपरी ईछां रै मुजब तरैं-तरैं रा रूप धारण कियां करती ही।’
    अे बात्यां घरां रा बूढ़ां-बडैरां कैयां करतां हां।
    ‘म्हां तो इणां नै बचपण सूं दैखतां रह्या हा। अै दौनूं आप-आपणै काम मांय उळझौड़ां रैवतां हां। मंगळौ गांव रो भलौ करण मांय बखत पूरौ करतौ अर किसतूरी घरां काम-काज, अड़ौस-पड़ौस री लुगाइयां री सेवा मां बखत पूरौ करती ही।’ इण बांतां ने नान्हीं उमर रा टींगर कह्या करता हां।
    उण रूप-रंग नै मंगळौ अर किसतूरी ईं नीं सगळां ई बिसरग्यां हा।
    अर जिकां कदाक नीं भूल्यां हा वैं सै देवलोक हुग्या।
    इणतरैं घणां बरस बीतग्यां, उठै अेक दिन मंगळौ अर किसतूरी घरां अेकळा फुरसत मां बैठ्यां हां। ईयां कदै-कदास ईं हुवतौ हो, पर उण दिन मंगळौ बारै गांवां री मुसाफिरी सूं अचाणचक आग्यौ हो अर उणरै आवण री सिरफ किसतूरी रै सिवाय किणी दूजां नै ठा नीं हो।
    मंगळौ कीणीं काम मां उळझग्यौ हो, वौं काम नै करतौ-करतौ अचाणचक काम नै छौड‘र धीरै सूं बौल्यौ।
    ‘किसतूरी’
    किसतूरी काम नै बीचाळै छौड‘र आई ‘कंई कैवौ, तद तंई तो मंगळौ जीमण आळी टेबल खनै पोंचग्यौ हो।
    टैबल रै खनैं, उण फौटू रै सामै खड़ौ-खड़ौ बोल्यौ:
    ‘मिजाजण, आज तो घणै जोर री भूख लाग्यी है।’
    किसतूरी उण रै खनै ईं ऊभी ही। उण नै कह्यौ: भोजन त्यार है, अबार लाऊँ हूं, सा।
    अर वां भोजन लावण लाग्यी के बठै अेकाअेक मंगळै उण रौ हाथ पकड़ियौ। किसतूरी चमक उठी। मंगळौ बीं फोटू नै आंगूचं ईं दैख लिनौ हो, वों फोटू खानीं आंगळी रों इसारौ कर्यौ। किसतूरी ईं बीं फोटू नै दैख्यो। बठै मंगळौ बोल्यौ:
    ‘किसतूरी, थूं म्हारै सागै इतां बरसौं तंई घणै हेत सूं रह्यी है, हां।’
    ‘जियां ईं उण नै अचरज भाव मे कह्यौ !’ किसतूरी मुळकीः ‘अर जियां थैं तो ........’
    पर मंगळै नै उण पूरी बांत नीं बोळण दी। बां बीचाळै ईं बोळी:
    म्हारी किंह ईछां चायै वां छौटी सूं छौटी अर चायै बा बड़ी सूं बड़ी ही, थें उण नै पूरी  नीं कीनीं हो ईयां कदैय नीं हुयौ।
    मंगळौ कैय कंई रह्यौ, उण वांत नै किसतूरी समझ नीं सकी। वां कीहीं बोल्यां बिनां ईं उणरै सामै जौवतीं रह्यी !
    मंगळौ बोल्यौ:
    ‘पो पछै आजै जै म्हैं कहूं, वां म्हारी इंछां थूं कंई पूरी करसी ?’
    ‘अवस करूं लां ? इण मांय पूछणै री कंई बांत है ? किसतूरी ने उण हाथ माथै आपरौ हाथ राख्यौ।
    ‘तो पछै ...... तो पछै .....’ मंगळौ कीं केहतौ-केहतौ रूकग्यौ, जरूर कीं परेसान करणै आळी बांत है, अेसां किसतूरी रै मन मांय लखायौ। पण मंगळौ ज्यूं कह्यौ बियां कर्यौ, ज्यौं मांग्यौ वो देवती रह्यी हूं। इण मांय परेसान कंई होवणौं है ? वां मन ई मन मां मुळकती बोली:
    ‘थ्हारी जिकी ही इछां है, म्हैं वां पूरी करूँली।’
    थारै मन मांय जरूर किं संका है। पछै वां मंगळै खनै गई। मंगळौ उण री ठोड़ी माथै आंगळी धरीं उण रै मुंह नै ऊंचौ कर्यौ, अर पछै बोल्यौ:
    ‘अबै तौ थूं इण दौनूं नै जिकां इण तसवीर मां है, उण स्वरूप मां म्हनै पाछौ लाय दें।’
    किसतूरी ने उण तसवीर नै बड़ै गौर सूं दैखी, ईयां ईं थोड़ी सोच‘र मंगळै रै मुंडै खानी, पछै उण‘रै हाथ नै छौड़‘र आपरौ हाथ उणरी कमर पर राख दियौ। पछै उण रै सामै मुळकती हुयी टकटकी लगया‘र दैखती रह्यी।
    मंगळौ उण री खानी दैखतौ रह्यौ - उणरै हंसणै ने, उण रै बिनां दांत आळै मुखड़ै नै, उण री आंख्यां सूं छळकतै हेत नै।   
    दूजी कानी दरपण हो। उण मांय वां बिनां बŸाीसीं वाळी लुगाई अर बिना केसौं रै माथै आळौ मिनख रो पडचदौ दिख रह्यौ हो।
    वै दोनूं ईं देख्यां अर उणि नै ईं निरखतां रह्यां हा।
    उण तसवीर करतां ओ जोड़ो मक फूटरौ लाग रह्यौ हो।
    मंगळै रै सामै आळै घर सूं रेडिये री आवाज आ रह्यी ही। उण रेडिये मां भजन सुरीली आवाज ‘मुखड़ा कंई दैखे दरपण मां‘ सुण‘र किसतूरी मन ईं मन मुळक‘र पाछी आपरी गिरस्थी मांय लागगी।

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