Ads 468x60px

ममता री पीड़ा

चित्र : नवीन अमीन
रूँखड़ी रौ मन घणौं उदास अर आमण-दूमणौ हो। वीरैं घर रै सामौ-साम अेक की हवैली ही। हवैली रै आगै खुली जमीन। कनांत सूं घिरयौड़ी अर कनांत रै ऊपर रंग बिरंगी चांदणी तांणौड़ी री। चाँदणी रै अेड़ै-छेड़ै अर बीच्याळै रंग-बिरंगां रौसणी रंग लौटियां अर कांच रां झाड़ जगमगावतां हा। उण मांय कैंई तो जगबुझ कर रह्या हा।
कनांतरै बीच्याळै अेक बारणै दाई राख्योड़ौ हो। उण मांय सूं न्यात-गिनायताँ रै आवण-जावण तांई रासतौं हो। उणी बारणै मांय बड़तै ई, डाँवै खानी नूंवी अबोट धोळी-धब सुजणी बिछायौड़ी ही। उण रै माथै बैठ्यां ढोली ढोळण। ढौळी पेटी-बाजौ बजावतौ हो अर ढौळण ताल सूं ढौल बजावती ही। दोनूं जणां आपरै साज में लय मिळाय‘र मीट्ठी आवाज में गीत गा रह्यां ......‘‘ बन्नां रै बांगा में झूला घाल्या, म्हारी बन्नी नै झूंळण दीज्यौ, बन्ना गैंद गजरा.....’’ घरां रै आगै अर पंडाळ मंाय धीरै-धीरै सगै संबंधियाँ री चहल-पहल बढ़ती जाय ही। मिनख लुगाई अर टाबर टींगर नवां रंग बिरंगै कपड़ाँ में सज्ज-धज्ज‘र आ रह्या हा। रंग-रंगिळै ओढणां साडियां अर सोनै चांदी रै गैहणाँ री पळपळाट, फूलाँ रै गजराँ अर सैंट इतर री मीट्ठी मीट्ठी सौरम, रूप अर जवानी री खिळखिळाट भरी ठिठौळियां अर हेत सूँ अेक दूजौ गळबांथ सूँ मिळण रै साथै, आवभगत आणंद उछाव रै सागै घणौ हरख रौ महौळ बण रह्यौ हो। क्यंकूै आजै अध मुहरत में झमकुड़ी रौ ब्याव हुवणं वाळौ है। जान नै जानीवासै में ढुकाय दीनीं है। बठै जानियाँ री मान-मनवार हौय रैयी है। अबार पडलौ आवण आळौ है।
    रूंखड़ी रै मन इ मन में उधेड़-बुण चाळ रहयी है। कै अबार रै कई बरस पैलाँ तो झमकूड़ी नै ई ठौड़ ऊंचौं- ऊंचौं जाँघियौं पैरयां रमती-कूदती दैख्यी ही। बाप री गौदयां में शैतानी अर उधम करती दैख्यी, वा मांवड़ती नै घणौक जियौ करातीं जणां वां रीस्यांबळती मारण तांई लैर नांठती झमकूड़ी ईंयां लागती कै जाणै कोई वां मां रै सागै सŸााताळी रमै है। अे काल री ई बांतां है। मैं उण नै कुŸाड़ी रै कुंकरियां री टांगडियां हाथाँ में पकड़-पकड़‘र हिडां हिंडावतै दैख्यां करती ही। कणैई उणां नै लाड सूं पुंचकारती आपरै लारै दौड़ावती, कणैई उणां नै मिरच्यां खडा‘र घणी सतावती। कद्दै ही-कदास सूं तो बड़ै हेत सूं उणा नै दूध-रोटी खवावै ही। कदेक सहेल्यां रै साथ लुक-मीचणीं रमती बेठां, नीम रे पेड़ अर पड़ौसी रै घर रै छपरै माथै चढ़ती कूदती दैखती ही। गणगौर रै दिनां में गंवरपूजण तांई गुड्डी री तरै सज्जी संवरी आतै जातै देख्यां करती ही, वां सिज्यां रां घुड़ळौ, माथै पर धरयां, घर-घर घूमती, अर गवर रै आगै नांचती दैख्यी ही।
    रूखड़ी उण नै कीरड़ै दाई रंग बदळतै कई रूपां में दैख्यी ही। वां उण री आदतों ने जाणती। झमकूड़ी रै रीस रासौ करतां दैख‘र कई बारं उण नै समझाणै री, मन मे घणी आवती। ओ-हो-हो-हो, दैख तो आ झमकूड़ी, जियां खेते में सोन चिड़कली......फर.......र....र.....र......र उड़ती रैवे बीयां है। वां आपरै घाघरी पैरयां फिरती नै दैख वीरौं मन उण नैं काळजै सूं लगावण रौ करतौ हो। अर वीं रै मुंडै सूं सबद निकळ पड़ेता, ‘‘हाय ! म्हारी फिरकलीं।’’ वां उणनै रौवतीं-कूंकतीं दैख‘र तो वींरौ मन उण रां आसूं पूछण तांई तड़क उठतौ, ‘‘ अ.....र........र.....र.....र झमकूड़ी। अैं ध्यारां मौत्यां जिस्सां आंसूडां नै इणतरै रौ-रौ‘र थोड़ी गमावण दैवणां है। म्हारी लाडैसरी रौं नीं बैटी, नीं रो।’’ मन रा अै बोल उण नै कैवण तांई होठां तक आवतां, पण उण री मां नै दैख‘र वां मन मसौस‘र, गुमसुम खड़ी रैवती।
    उण नै हांक्कां करती नै दैख‘र रूखड़ी रौ मन वीरैं जियां हौय जावतौ ! ‘‘ अरै दैखो झमकूड़ी नै देखौ।’’ वां आपरै खनै खड़ै धणी नै कैवती ‘हूं ई रै उमर री ही, जणां म्हैं ईंया ई रोळां-रप्पां करती ही। म्हैं झमकूड़ी नै दैखूं जद म्हनै म्हारौ बचपण याद आवै है। ‘तद वो रौवणौ रौ सौ मूंडौ बणा‘र कैवती आजै म्हारी भवरड़ी हुवती तो ईयां ई छळछंद करती। पण कांई करां ईण ऊपर बाळै ने ई कांई दौस दैवां वां आपरी उमर ई इति लिखा‘र लाई हीं।
    ‘नेमळौं बीं री हां में हां भर’ अणमणौ हौय जावै बां पाछै बां नै बदळ दैवती।
    भवरड़ी वीं री धींव ही। उण रै तो भगवान जाणै के अैड़ी खौटी बीमारी लाग्यी कै बैद अर डाकदरां री दवाई पाणी की काम नी आई। कई मुसीबतां अर मनोतियां रै पदै भंवरड़ी छवं महीनां भुगत‘र अचाणचक चळ बसी। रूखड़ी री उण बखत सूं ई गोद सुन्नी हुग्यी ही।
    ई घटणां रै पछै तो रूखड़ी बावळी‘सी रैवणं लाग्यी वां रात-दिन गैळी गूंगी बात्यां करती। अणमणी अर उदास रैवती हीं। वां आपरी बैटी रै मरणै पछै दूंजा रै टाबरां नै दैख-दैख‘र कणेई तो हंसती अर कणैई रौवण नै बैठ जावती। वां दिनभर रौवती। वां रात दैखती अर न दिन वां, भर-दुपारै बळबळतै ताव मांय डागळै रां चक्कर काटती रैवती। मांय बड़बड़ाती रैहती। वां कदै कदास भर सरदी में डागळै माथै घूमती फिरती। जोर-जोर सूं चिल्लाटयां मारती, सिझां रै बखत बास रां टाबर-टींगर, वीं रै घर रै आगै सूं आणां जाणां बंद कर दिया। जै कदैई भूळ सूं बास री मीनख, लुगायां, घरै रै आगै सूं निकळता, जणां वां डागळै सूं भाठां फैंकती। इण सूं बास रां लोग उण सूं घणा दुःखी हुग्या हा।
    ईण तरै बास‘रा मिनख मेळा हौय‘र रूखड़ी रै घर आळै नै ओळभौ हियौ वो सब री बांत्या सुण‘र हाथ जौड़‘र माफी मांगी उणां नै कैयो कै अबै ध्यान राख सूं। आ बिचारी बेबस है। इण रौ कई-न-कई उपाय करूंला।
    इण हाळातं सूं नैमलो घणौ दुःखी हुग्यौ हो। छैकड़ वो हिम्मत कर‘र बैदजी नै दिखाय दवा-पाणी दिराई। इण बीचै, नैमलौ उण नै आछी करण तांई, घणी मुसीबतां रो सामनौ करयौ। रूंखडी रौ मगज तो ठीक हुग्यौ पण रूंखड़ी रै दूज्यौ टाबर नीं हुयौ। घणांई डौरां जन्तर करा लिया हा।
    रूंखड़ी रै घर रै सामौ-साम खुडी रो घर हो। उण रै अेक टींगरी ही, बी रो नाम झमकूड़ी हो। नीं जाणै, कणै अर कियां रूंखडी रौ मन, झमकूड़ी मे उळझग्यौ ? वीं नै दिन रात झमकूड़ी ई दिखती ही। वा उण रै काळजै री कौर बणग्यी ही।
    अेक दिन, झमकूड़ी बास री छौरयां सागै लुक-मीचणी रमतां-रमतां, जाळ रै पेड़ माथै चढ़ग्यी। वां पेड़ सूं पाछी उतरती बैळा, उणरी घघरी पेड़ री डाळी में उळझग्यी। हवै वा हवा में हिण्डै दांई झुळण लाग्यी, जणां वां ‘‘है रै म्हैं पडूं रै’’ इणतरै कूकती नै दैख‘र रूंखड़ी डर रै मारौ भाठौ बणग्यी ही। वा आपरी छाती ने हाथां सूं दबायौड़ी, हकी-बकी हुयी, झमकूड़ी नै दैख्ती रैयी। झमकूड़ी, थौड़ी ताळ पछै डाळी सहित नीचे आर पड़ग्यी। वा झट उठ परी‘र पाछी खेळण लाग्यी, जणां रूंखड़ी रौ, जी में जी आयौ। ‘‘हाय राम वां बचग्यी’’ कैवती हुयी ओढ़णी रै पल्लै सूं मूंढै पर सूं पसेवौं पूछयौ। पछै वीं नै चेतौं आयौ के चूलै पर राख्यौड़ो दूध सिगळौ उफणग्यौ है। झमकूड़ी आपरै खेत गयौड़ी हुंवती। उण रै खेत सूं पाछी आवण री बैळा हुवती जणां रूंखड़ी, बावळी हुयौड़ी, घर रै फळसै में उभी-उभी उण री बाट जौवती रैवती ही।
    अेक दिन झमकूड़ी नैं खेत सूं आवण में मौड़ो हुग्यौ हो। वीं दिन उण नै उडकीतै रूंखड़ी रो मन दुविधा में पड़ग्यौ। मन में कई तरै रा विचारौ सूं घिरग्यी। ज्यूं-ज्यूं मौड़ो हुवतौ गयौ, बियां-बियां काळजै में खळबळाट मचण लाग्यौ। वां, जिकी जगै ई उंभी, बठै सूं खिसक नी सकी। नीं ई घर रै काम में मन लाग रह्यौ हो।
    झमकूड़ी बखतसर आवै नीं आवै, पण रूंखड़ी रौ घर-धणी तो बखत सूं आवण आळौ हो। फैरूंई रूंखड़ी झमकूड़ी री उड़ीक अर गैर-हाजरी रै कारण सूं आमण-दूमणी हुग्यी ही। क्यूं भलां
    कदाच ईण कारणै कै आपरै ब्याव रै पछै, अेक डावड़ी नै जळम दैवणो अर वां, बीमारी रै कारण भगवान नै प्यारी हुग्यी ही।
    रूंखड़ी रै सासरै अर पीरै मांय, कोई छोटौ टाबर हो जिणजै वां आपरै खनै राख‘ आपरै मन री हूंस पूरी करलै। उण रै घर सामै झमकूड़ी रौ घर हो। बास में घर आमै-सामै हुवै जणा अेक पड़ौसी रै नातै दौनूं घरां रै बीच्याळै आव-जाव रेवैई हैं रूंखड़ी झमकूड़ी रै घर में, आवणौ-जावणौ घणौ कर लिनौ हो। वां धणी रै काम-धंधै गियां पछै, दिन-भर झमकूड़ी रै घरां ई बैठी रैवती ही। उण रौ मन झमकूड़ी में उळझग्यौ हो। वां झमकूड़ी बिना, अेक पळ नीं रैय सकती। कई बखत तो ईंयां ई आवणौ-जावणौ चालतौ रयौ। पण कई बात्यां, बडैरा साचीज कैग्या है ‘‘ मौटी आंख फूटण नै, अर घणौ हेत टूटणं नै’’। रूंखड़ी, दिनभर झमकूड़ी रै कनै बैठणै सूं उण री मां समझग्यी कै रूंखड़ी रै टाबर-टींगर नीं है, आ कठैई म्हारी छौरी रै निजर नी लगा दे। आ समझ‘ वां रूंखड़ी नै घर में आवण सूं मना कर दियौ हौं। इण कारण सूं उण रौ, घर में आणौ-जाणौ बंद हुग्यौ हो।
    अेक दिन री बात है कै रूंखड़ी बाजार गियौड़ी। वां झमकूड़ी ने मां रैं सागै देख लीं। झमकूड़ी रमतीयै खातिर हट कर लियौ हो। उण री मां रमतीयौ दिराणै सूं मना कर रहयी ही, रूंखड़ी मां-बेटी रौ ओ खेल दैख रहयी ही। वां उणां रै कनै गयी। झमकूड़ी कंई लेवणौ चावती ही ? वा ईण बांत नै समझग्यी। दुकान सूं गुड्डी-गुड्डौ मौल लैयर झमकूड़ी रै हाथ में थमां दियौ। झमकूड़ी रै हाथ सूं गुड्डौ-गुड्डी खौस, ‘रिस में सड़क माथै फैंक दिया। वां रूंखड़ी नै कह्यौ ‘‘थूं कदैई म्हारी छौरी ने कंई चीज-वस्तु दैवण री अबै सूं हिम्मत नीं करयै, समझी ?’’
    रूंखड़ी उण री बात्यां सुणती रैयी पण की बोली नीं। वां झमकूड़ी कानी दैखती रैयी। उण री मां झमकूड़ी रौ बूकियौ पकड़यां बठै सूं व्हीर हुग्यीं। रूंखड़ी, मां-बेटी नै जावती दैखती रैयी। झमकूड़ी पाछी मुड-मुड रूंखड़ी सामै, अेक-दो दफै दैख्यी जणां मां फटकार लगावती चली गयी।
    इण बात नै च्यार-छह मास हुया हुवैला के रूंखड़ी नै अचाणचक अेक दिन बाजार मां, मणियारै री दुकान पर झमकूड़ी उभी मिळग्यी। रूंखड़ी उण नै दैखतें ई झमकूड़ी नै कहयौ ‘‘ आज कई खरीद रहयी है ?’’ म्हैं तो मासी, ईया ई दैखण नै खड़ी हुग्यी। ‘‘ईयां ई क्यूं खड़ी है, बैटी ? तनै जो पंसद है वां तूं लेई लें।’’ वां शकौं करती किंई नी बोली। थारै पास पैंसा नीं है ? कई बात नीं पैसा म्हैं देसूं। वां दुकानदार नै कैयो ‘‘आज जीकी चीजबस्त मांगें दे दे ?’’ मासी म्हैं तो हारियौं लै सूं दुकान वाळौ हारियौ रौ डब्बौ खौल्यौ। वां हारियौ पसंद करयो। वां हारियै साथै झमकूड़ी नै नख पालिस और दिराई हारियै अर नखपालिस रां पैसां दैय‘र उण नै पूछयौ ‘‘ के अेकळी आई है कै थारै साथै और कुण है ?’’ वां कहयौ ‘‘म्हैं मां रै साथै आई हूं।’’ इवै केवणै रै साथै ‘‘लारै सूं आवाज आई।’’
    ‘‘हूं तनै किŸाी बार मनां करयौ ?’ उण नै झमकूड़ी रै हाथ सूं हारियौ अर नख पालिस री सीसी खौंस‘र सड़क पर फैंक दिया। रूंखड़ी सामै दैख बोली: तूं म्हारी छौरी रै लारै क्यूं पड़ी है ? वां झमकूड़ी रौ हाथ पकड़या बठै सूं टुरग्यी। वां हारियौ अर नखपालिस री सीसी उठा‘र, घर रौ रासतौ लियौ।
    ई दौय बात्यां रै पछै रूंखड़ी उण सूं कदै मिळण री। हेमन्त नीं करीं। वां झमकूड़ी नै उण रै घर‘री बाखळ मांय खैळतें कूदतै अर बास में आतै-जातै ई दैख‘र राजी हौय जाती ही। पर अबै ....?
    अबै वां (झमकूड़ी) थौड़े बखत में तो सुवटड़ी आंगण सूं उड़ण वाळी है। परदेसी सूवटियै रै लारै।
    आ जाण‘र रूंखड़ी रौ मन घणौ उदास होरयौ हो। अर दूजै दिन झमकूड़ी रौ ब्याव हुग्यौं।
    ब्याव रै दूजै दिन भोर रा रूंखड़ी रै आगै लुगायां रो टोळौ। उण टोळौ आगै बीन-बीनणी धीरै-धीरै चाल रहयां हां। लुगायां गीत गा रहयी हीं। ‘‘इŸारौ माता जी रौ लाड़ छौड‘र बाई सिध चाल्या, आयौ सगां रो सूवटौ लैग्यिौ टोळी मांयू सूं टाळ छौड़‘र बाई सिध चाल्या।’’ आवाज सुण‘र रूंखड़ी घर रै बारणै रै आगै उभग्यी ही। वां मन में समझग्यी के झमकूड़ी री आंख्यां सूं आंसूड़ा टपक रह्या हां। गांव रै किनारै सड़क माथै बस खड़ी ही। सैंग बाराती मोटर मांय बैठयां-बैठयां बीन-बीनणी नै उड़ीक रह्या हा। जियांई बीन-बीनणी मोटर में बैठ्या अर मोटर रवाना हुयगी। लुगायां टाबर पाछा आ रह्यां हा, लुगायां गेलै में ओळूंडी गावती आ रह्या तद रूंखड़ी घर‘रै मौड़े बीचाळै ऊभी रौवै, आसूं पडरस्यां हा। लुगायां गीत गावती उणै रै घर खनै पूग्यी जणा ओळूं रा बोल सुण्तां ई ‘‘ उण रौ हिवड़ौ बस में नीं रहयौ वा रौवती सुबकती चुप नी रहयी।’’ अेक बार करला थारां मारूजी पाछा जी घेर, राजींदा ढोला, ओळूं तो घणी आवै म्हारी मांय री अै गीत रा बोल सुण‘र रूंखड़ी नै रौवती नै दैख झमकूड़ी री मां उणरै खनै गई आपरै गळै सूं लगाय रौवती नै थावस बंधा रहयी ही। उण नै कई ताळ तांई समझा बुझार चुपकर दीनीं। वां लुगायां रै टोळै सागै घर आगै पूगीं। वां जियां ई गीत पूरौ हुयौ अर वां घर मांय सू गुड़ रौ धामौ सूं सैंग लुगाया नै गुड बाटयौ। लुगायां आप-आप रै घरां गई। रूंखड़ी घर आगै खड़ी ही। उण री निजर झमकूड़ी रै घर अर बास पर पड़ी। झमकूड़ी रै बिना घर सूनौं-सूनौं लाग रह्यौ हो। उण घर पर जो चिड़कळी ही, वां उड़ग्यी ही। अवै वातावरण एकदम शांत अर मोहक हो, पण वौ रूंखड़ी नै अणमणौ अर उदास दिख रह्यौ हो।
    अे सारी बात्यां, कियां अर क्यूं हुयी ? रूंखड़ी मन ई मन सौचणी लाग्गी ‘वा झमकूड़ म्हारैं कांई लागै ?’’ कदाज वा म्हारी बेटी हौवती तो ही ब्याह कर‘र आपरै सासरै ई जांवती न ? कौख सूं जळम लियौड़ी हौवती तो ही ब्याह रै पछै तो पराई हुवै है, म्हारै तो वां किई नीं लागती ही। म्हनै उण रै बारै चिन्ता करणी चाईयै नीं।
    आपरै मन नै सीख दैवतीं रूंखड़ी नै सवाळा। रां जवाब खुइ नैई मिळग्या हा। वां आपरै मननै समझा‘र, नैच्यौं कर लिनौं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें