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मन रौ सळ

चित्र : अजीत मीणा
गाड़ी अजै ऊभी ही। माणक पूरी सीट माथै लम्बी ताण‘र सूतो हो। बीं री आंख्यां खुली ही। बो छत-पंखै कानी अेक मींट सूं ताकै हो। बो बारी रै बारै देख्यो तो लजखावणो हुयग्यो। बारी तो बंद ही अर बारै घणो अंधार-घुप्प हो। इण खातर माणक नै आपरौ मूंढो ई दीस्यो। डब्बै में एक छोटै लोटियै रो मंदो उजास पसर्योड़ो हो। बीं रै
पचास बरस री उमर में काळा भंवर बाळ अर पांच दिनां री बध्योड़ी दाड़ी.....। माणक बारी खोली। बिरखा अजेस चालू ही। उण बीड़ी सिळगाई अर बध्योड़ी दाड़ी माथै हाथ फेर्यो। म्हैं गांव में पूगता पाण सगळा सूं पैली दाड़ी बणवासूं। इणाकलो माणकै मन में सोच्यो। गांव रै बस अड्डै खनै अेक पींपळ रो रूंख, बीं रै हेठै पाटो, उण माथै गंगाराम संवार रो समान लेय नै बैठ्यो करतो हो। माणकै नै मन ई मन बो चेतै आयो। गंगलो अबार तांई जीवतौ कै खप्यो ? उण रै मन में खटको हुयौ। गांव अर गांव रा लोग तीस बरसां मांय तो खासा बदळग्या हुसी। गंगलो बिंयां तो घणो ई स्याणो-सैंठो मिनख हो। उण दिन तो बो सफा मना ई कर दियो हो पण मुकनै सरपंच री डांग री फटकार पड़ी जणा उण उस्तरो हाथ में लियो हो .....। बीं दिन सूं माणकै रे मांय खटास आयगी ही। बो जोस सूं बारी बारै खंखारो थूक्यो-आक् थू....! तीस बरसां पैला री इण घटना री याद आवतां ईज माणकै रै बिच्छू चटको भरग्यो। इण तरै जाणै बीं रै अंग-अंग में बळत हुवण लागी। इण बळत नै बिसरावण खातर ईज तो गांव-गांव सूं देसूंटो मिल्यो ....। लगैटगै तीस बरसां पछै बो आपरै गांव कानी घिर्यौ हो। पण आ गाड़ी पूगै जद नीं .......
    बिंयां तो आ गाड़ी रात री नव बजी पारवौ गांव पूगावै। पण दोय दिनां सूं बिरखा री अखूट झड़ी लाग्योड़ी। कांई ठाह कठै-कठै चीलां मांय पाणी भरीज्योड़ो। ठाह नीं गाड़ी कणा-कद पूगै, कांई भरोसो ....? पूगै का नीं पूगै ?
    माणकै बुझ्योड़ी बीड़ी नै फैंक परो नूंवी बीड़ी सिळगाई। पारवौ गांव नीं आवै जद तांई बगत ई काटणो हो। बिरखा रै कारण गाड़ी खाली-सी-क ईज ही। ग्यारस का पूनम रै दिन तो गाड़ी मांय पग धरण नै ई जागा कोनी लाधै। ठैसण सूं गांव आठेक कोस अळघो हो। गांव में बस्ती तो घणी कोनी ही, पण आखी-अखूट धावना रै धणी बाबै रामदेव रो मिंदर हुवण सूं भगतां री भीड़ बारूं मास रैवै।
    छेकड़ रात री दोय बजी गाड़ी ठावै-ठेसण माथै पूगी, जद ईज झिरमिर-झिरमिर बिरखा तो बरसै ही। गाड़ी मांय सूं सातेक मुसाफिर हेठै उतरया। ठेसण रै बारै मींट करी तो कोई बस का साधन नीं दीस्यो। ठेसण माथै पूछयो तो ठाह पड़ी बिरखा री वजै सूं मारग खराब है। इण सूं तांगा टैक्सी वाळा कोई कोनी। मिंदर रो बळध-गाड़ो दिन रा दोय-तीन गिड़का काढै। बो छव-साढी छव बाजी तांई आवैला, तद तांई इण बैंच माथै ठाठ सूं नींद खांचो।
    माणको ठेसण रै अेक खूणै मांय पड़ी बैंच माथै अराम करण खातर पाधरो हुयग्यो। बीं रै लोटियो आंख्यां मांय जाणै चानणौ खुबाबै हो इण खातर बो मुड़को देय परो सूयग्यो। सामीं भींत माथै सिनेमा रो फोटू मांय किणी हीरोइन रो बडो सारौ चैरो दीसै हो ? उण रो चैरो किण सूं मिलतो-जुलतो हो ? माणको गतमागत मांय पजग्यो। बो पाछो सीधो होय नै रूमाल काढ‘र मूंढै माथै ओढ लियो। अर माडाणी आंख्यां मींच नै सूवण लागौ।
    किणी हेलो कर्यो-मिंदर रो गाड़ो आयग्यो। किणी नै बाबै रै जावणौ हुवै जिको बैठ जावो। माणको ऊभो हुयो अर ठेसण रै बारै आयो। दूजा घणखरा बटाऊ बैंचां माथै नींद लेय रेया हा। बिरखा बंद हुयगी ही। बळध-गाडो ऊभो हो। गाडै मांय बैठणवाळा भीजै नीं, इण सारू जापतै सूं गाड़ै माथै तिरपाळ ताणैड़ो हो। माणको गाडै मांय जायर बैठयो। गाडै रै मांय दूजो कोई नीं हो। बो पाछो ऊभो हुयर गाड़ै सूं बारै निकळयो। गाडै आगै छतरी तण्यां अेक मिनख बैठो हो। माणक नै लाग्यो-ओ ईज गाडै वाळौ है। माणको उण नै पूछयौ-बीजो कोई कोनी ? गाडै-वाळै भूण हिलायर ना दीवी। माणकै उण नै कैयो-म्हैं चाय पीय आवूं। गाड़ौ ठैराया। म्हैं आवूं।
    माणको चाय पीय आयो तद उण देख्यो गाडै वाळै पाखती ठेसण वाळो आदमी ऊभो हो अर अेक लुगाई गाडै मांय बैठी ही। माणको आगै बधनै गाडै मांय चढ़ग्यो अर बोल्यो-अबै चालो भंलाई। गाडै वाळौ बळधां नै टिचकारी दीवी। गाडै मांय बैठी लुगाई संकीजती भेळी गांठड़ी जिंयां बैठी हीं
    मारग खराब, ऊंचो-नीचो, ठौड़-ठौड़ कादो किचपड़ अर पाणी भेळो हुयोड़ो हो। गाड़ौ चालतो-चालतो उछळतो। मारग मांय केई छोटा-मोटा खाड़ा। जापतैसर गाड़ौ होळै-होळै चालतौ गयौ।
    माणकै बीड़ी सिळगावण खातर तूळियां री पेटी काढी। दोनूं होठां बिचाळै बीड़ी दाबी ईज ही कै अेक जोर रो धचको लाग्यो। हाथ मांय सूं तूळियां री पेटी छिटकगी।
    दिन चढ़ण लाग्यो, उजास होळै-होळै बधण लाग्यो। गाडो होळै-होळै गांव खानी बधै हो। अचाणचक गाडै रो चक्को खाडै में पड़यो तद बा लुगाई अेक मंदी चीसाळी साथ डिग परी माणकै माथै गींडै दांई पड़ी। माणको होळै‘सीक उणनै आप सूं अळघी करी अर बा आपरै सावळ ढंग सूं बैठी जणा माणकै उण रो मूंढो देख्यो ......
    - अरे किस्तूरी थूं ! माणको जाणै कोई सुपनो देख रैयो हो। बो उण रै मूंडै सामीं देखतो रैयो। किस्तूरी रै माथै रा सगळा केसां मांय चांदी रळगी ही पण आंख्यां री चमक उणियारै माथै अजै बिंयां री बिंयां ई ठावी ठिकाणैसर ही।
    -अरे माणका थूं ! किस्तूरी बोली तद माणकै नै लाग्यौ कै किस्तूरी री बोली ई अजै बिंयां री बिंया ई है। उण रै उणियारै रो बो ई भळको लागै।
    बगत थमग्यो। हो जठै रो जठै ई रैयग्यो। अर जाणै माणको-किस्तूरी दोनूं पाछा घिर्या। तीस बरस पाछा जद इणी ठाळै अेक बिरखा वाळी रात ही अर हा बै दोनूं सागण मनगत। ओ कोई संजोग हो कै हर साल री भांत गांव रा लोग-लुगाई ऊंट गाडा, बळध गाड़या मांय बैठ‘र षिवबाड़ी रै मेलै गया हा। पण किस्तूरी रै घरआळा सगळा मोटरगाड़ी मांय बैठर गया हा। सिंझ्या पाछी घिरती वेळा मोटरगाड़ी खराब हुयगी। उण रै घरआळा आधा बळधा गाडी में बैठग्या अर नावड्यां जियां आधा ऊंट गाड़ी में बैठग्या। अर किस्तूरी माणकै रै नैड़ी बैठी ही। बीं सावण री सिंझ्या बीस बरसां रै जोध जवान माणकै रै जीवण मांय पैली वळा किणी जवान छोरी-किस्तूरी-इŸौ नैड़ै सूं सांसां नैड़ी सांस लियो हो। ओ साव नूंवो उद्बुदो लखाव अर माणको जाणै किणी किणी दूजी दुनिया में पूगग्यों। बिंयां तो बै दोनूं अेक ई गांव रा रैवासी हा। पण माणकै किस्तूरी नै दूर-दूर सूं देखी ही पण इतरी नैड़ी आज पैली बार उण नै बो देखी।
    आभो बादळां सूं घिर्योड़ो, घटाटोप काळी कळायण उमट्योड़ी अर बिजळी आभै में पळका मारै ही। अेक जोर रै घरघराटै साथै बिजळी कड़की तो किस्तूरी माणकै नै बाथां सूं काठो झाल लियो, अर फेर संकीजती छोड़ दियो। बस उणी टैम, उणी घड़ी सूं, उणी दिन सूं माणकै रो आखो जीवण बदळग्यो।
    ग्यारवीं तांई भण्यां पछै माणको खेती रै काम-धंधै मांय लागग्यो। सावण री दसवीं आळी सिझ्ंया पछै उण मन मांय पक्की धार लीनी कै जे परणीजसूं तो फगत किस्तूरी संू ईज, नींतर अकन कुंवारो ई रैसूं। बो केई दिन मिंदर रै बारै चौकी माथै बैठण लाग्यो। अर पछै हिम्मत कर होळै-होळै बो नीम रै पाखती जिको कूवै सारै हो, ऊभण लाग्यो। किस्तूरी कूवै माथै पाणी भरण नै आवै तद साथै दोय-च्यार छोर्यां पक्कायत हुवै। इण सूं बीं सूं बात करै तो किंयां ? बो फगत उण नै निरखतो रैवतो। बिंयां तो ओ सगपण जात-पांत देख्यां सज सकतो हो, पण अेक मोटी छेती धन री ही। किणी प्रेम-कथा दांई इण कथा रो नायक गरीब घर रो हो, आ ईज उण री मोटी फाड़ ही, मोटो दोस ही। इण खातर ओ जोग संधै तो किंयां संधै ? माणका कैवै तो किण नै अर किंयां-कांई कैवे ? किण री अक्कल चरण नै गई कै बै ओ सपनो सांच करण खातर, सोच ई लेवै ? बात होठां सूं ईज नीं निकळी। पण माणको सोच्यौ-म्हैं सीधी किस्तूरी सूं बात करलूं तो मन रो सळ निकळ जासी। पण किस्तूरी रै आगै बात करूं तो किंयां ?
    अेक दिन सिंझ्या रा किस्तूरी आपरै खेत सूं आय रैयी ही। बठै माणकै उण नै बीच मारग थाम नै आडै होय नै कैयो कै किस्तूरी म्हैं थारै सागै परणीजणो चावूं। आथमतै सूरज रो रातो उजास किस्तूरी रै मूंढै माथै पळपळाट करै हो।
    ................किस्तूरी ...........म्हनै थारै साथै ईज ब्यांव करणो है ...... म्हैं थनै ई परणीजूंला नींतर अकन कुंवारो रेसूं ....... सुणै माणको बोलतो जावै हो अर किस्तुरी चितबंगी हुई माणकै नै देखै ही।
    माणको सगळी बात-मनगत कथी कै कद किंयां उण नै उण सूं प्रीत हुई। बा बिजळी री कड़कड़ाट। किस्तूरी रो माणकै सूं बाथां मिलणो ......अर माणकै रा सपना ...पण किस्तूरी तो साव अणजाण ही। बां नीं जाणती ही कै प्रीत किंयां हुवै ? कंाईं हुवै ?
    छेकड़ किस्तूरी बोली - देख माणका ! आज तो म्हैं थनै माफ करूं। थूं कैयी जिकी म्हैं सुणली। पण आज सूं आगै इण ढाळै री कोई बिसादी बात करी तो म्हारै सूं भूंडी कोनी हुवैला। समझ्यो ?......
    माणकै रा सुख-सुपना माटी रळग्या। किस्तूरी री साफ मनाही जाणर बो चमगूंगो हुयग्यो।    -किस्तूरी म्हारी बात तो सुण, म्हैं सोगन खायर कैवूं, थनै टाळ किणी दूजी नै कोनी परणीजूं। थारै सिवाय सगळी मा-बैन ...।
    माणको थोड़ोक आगै बध्यो। किस्तूरी लारै खिसकी।
    -देख माणका ! इण ढाळै बावळौ मत बण। अर जे थूं इण ढाळै फेर कदैई म्हारो मारग रोक्यो तो, म्हैं म्हारै घरै कैय देसूं। फेर थूं थारी सोच लियै।
    माणको आपरी हार मान बठै सूं खिसकग्यो। पण किस्तूरी रो नषो उण माथै तर-तर बधतो गयो। उण नै ठाह पड़ी के किस्तूरी री सगाई हुवणवाळी है, तद उण माथै भूत सवार हुयग्यो। बीं दिन ई उण खेत जावती किस्तूरी नै अेकली देख‘र भळै रोक ली। रोक कांई लीं, उण रो हाथ झाल लियो। किस्तूरी जोर लगा‘र हाथ छुडावण नै खसी, पण माणको हाथ कोनी छोड्यो। किस्तूरी हाको कर्यो। जोर-जोर सूं-बचाओ, बचाओ ...।
    पण माणको बावळो हुयोड़ो। हाथ कोनी छोड्यो जिको कोनी ई छोड्यो। लोग भेळा हुयग्या।
    किस्तुरी रो भाई लकड़ी लियां पूगग्यो अर दे धमा-धम अर पछै लोग ई आया जिंयां जमावण लाग्या। गांव सरपंच अर किस्तूरी रो भाई आपसरी में धरमभाई बण्योड़ा हा, सो बात बधी अर बधती ईज गई।
    माणकै रो काळो मूंढो करीज्यो, गधै माथै उण नै भदर कर‘र बैठायो। आखै गांव में खल्ला री माळा पैरायां उण नै घूमायो। अर अधमर्यो कर गांव री रोही मांय छोड़ दियो। सिंझ्यां गांव री रोही मांय उण नै चेतो हुयो बो जिंयां-जिंयां कर ठेसण पूग गाड़ी चढ़ग्यो।
    बो भटकतो-भटकतो अलीगढ़ पूगग्यो। बठै किणी ताळैरी फैक्ट्री मांय मजूरी करी। जूण-गाड़ी चालती रैयी। बीस बरसां पछै बो बम्बई अेक ठावो-ठिकाणो कर्यो, अर ढंगसर हालत में पूगग्यो। अेक छोटी दुकान रो मालक बणग्यो। काम बधतो गयो। दिन कटता गया।
    बगत फुरण लाग्यो।
    जोग सूं गांव रो अेक आदमी बम्बई में माणकै नै मिल्यो। माणकै नै तद ठाह पड़ी कै उण रै गांव छोड्यां रै बरस अेक-सवा पछै किस्तूरी रो ब्यांव हुयग्यो ...। बा दो छोरा री मां हुयगी ....। अर जोग-कुजोग खेत मांय कुंवै री मोटर ठीक करता करंट सूं बै मरग्या। अर किस्तूरी रो धणी ऊकचूक हुयग्यो, उण रो मन उखड़ग्यो। संसार असार लागण लाग्यो। बो किस्तूरी अर घर-संसार नै छोड़र ठाह नीं किण दुनियां मांय निकळ्ग्यो। किस्तूरी अेकली हुयगी। बिखै रा दिन तोड़ैं गांव-गांव भटकती उण नै सोधै। किस्तूरी री रामकहाणी जाण‘र माणकै रो चिŸा ई उखड़ग्यो। जीव आकळ-बाकळ हुयग्यो। करै तो कांई करै ? जावै तो कठै जावै ? कोई आगै-लारै कोनी ? अेक साध फगत किस्तूरी। अर बा ई इण अजोगी गत में।
    माणको तीस बरसां सूं आपरी जड़ा पासीप पूगण वाळो हो कै किस्तूरी सूं भेंटां हुयग्या। दोनूं मून अर बगत ई थमयोड़ो।
    कांई कैवै माणको ?
    कांई कैवै किस्तूरी ?
    - किस्तूरी ! म्हैं अजेस कंवारो हूं। अर माणको चुप। किस्तूरी कीं नी बोली, फगत हाथ जोड्यां देखती रैयी।
    - म्हैं सगळा कीं जाणूं। बम्बई में म्हारै खन्नै रैवण नै ठीकसर घर है, पण घर खाली है। किस्तूरी .....। अर भळै माणको चुप।
    माणको किस्तूरी रो हाथ पकड़ लियो। किस्तूरी कीं नीं बोली। माणको थोड़ीक ताळ पछै हाथ मŸौ ई छोड़ दियो, तो किस्तूरी माणकै रै पगां पड़गी। रोवण लागी।
    - थे पाछा जावो परा।
    किस्तूरी रो पडूŸार सुण‘र माणको ढीलो हुयग्यो। बो बोल्यो-किस्तूरी ! म्हारै में कांई कमी है ? म्हारै प्रेम री परीक्षा मत ले।
    - आ थांरी नीं, म्हारी परीक्षा है। थे पाछा जावो परा। अर टप-टप आंख्यां सूं आंसू ढळकावण लागी।
    बारै अबै उजाळौ हुयग्यो हो। गाडो अेकदम सूं धीमो हुयो अर माणको अचाणचक हेठै उतरग्यो। कादै किचपड़ वाळै मारग नै भूल परो बो दौड़ण लाग्यो, अर दौड़तो-दौड़तो अेकर ईज लारै नीं देख्यो।
    किस्तूरी उण री पीठ नै जोवती रैयी अर उण रै अदीठ हुयां, आपरा आंसू पूंछ लिया।

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