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पगफेरौ

चित्र :  अजीत मीणा
‘बाई, थंारै आयां पछै ई तौ इण घर मांय धन, मान, संपत्ति आयी है! आ हा-हा ! थारौ मंगळ....! अर वाह रै वाह भाग्य रौ अधिपति गुरु....।’ ज्योतसी महाराज लगैटगै सगळा ग्रहां बाबत कै बै किण-किण उत्तम स्थानां माथै विराजमान है, किण-किण संयोगां री रचना रची है अर किणरी कठै-कठै मींट पड़ रैयी है, बतावता थका भगवती नैं भागआळी बतायी।

    ‘कैवण रौ मतळब, इयां ई हुयौ हुवैला बाई कै थंारै जलम रै पछै ई बाप रै घर में लिछमी, रुणझुण-रुणझुण करती आई हुवैला, बाप रौ ओहदौ बध्यौ हुवैला, भाई-भतीजां रौ ई.... समझ्या कै नीं? थांरा तौ अैड़ा ग्रह है बाई कै थूं जिकै पर खुस हुय जावै समझलै बीं मिनख रौ दुख दाळद दूर हुयग्यौ।’
    ‘अर जिकै ऊपर आ भगवती बेराजी हुवै, बीं बेचारै रा कांई हवाल हुवै, औ ई बतावौ नीं पंडितजी?’
    ‘इयां म्हारी बात री मजाक मत उडावौ भीमराज भैया, सांमै वाळी भींत पर लिख लेवौ, औ मधुकर कदैई झूठौ कोनी पड़़्यौ। हां, जिकै मिनख पर भगवती बाई बेराजी होवै बीं री सै धन-दौलत....।’
    भीमराज मधुकर ज्योतसी नैं उणरी कल्पना सूं कीं बेसी दिखणा देय’र विदा कर्याै।
    ‘देख भगवती, म्हैं कांई कैय रैयौ हौ? सैं काम निरविघन होसी। तबीयत नैं कीं ई नीं होयौ है। थूं बिरथा ई चिंता करती रैवै। मधुकर कोनी कैयौ कांई?’ भीमराज सूं वाक्य पूरौ कोनी हुयौ। भगवती री आंख्यां सूं आंख्यां मिळावतां ई बींनैं मैसूस हुयौ कै इण कमरै सूं बारै निकळणौ ई उचित है। इण बगत भगवती किणी बातचीत में रुचि लेवण नैं त्यार नीं ही अर बींनैं नाराज करणै रौ कोई अभिप्राय भी नीं हौ। उणरी इच्छा रै खिलाफ बीं रै कनै बैठणै रौ मतळब मुसीबत नैं बुलावणौ हौ। अबार-अबार तौ मधुकर कैयौ हौ कै जे भगवती बाई नाराज हुवै तौ....?
    ‘फेरूं थे ऊभा होयग्या? कठै जावणौ है अबार? फेरूं अबार इण बगत ग्राहकां में....।’
    ‘भगवती, बजार री उथळ-पुथळ तौ थूं जाणै ई है नीं। बजार तेजी में अेक सरीखौ चाल रैयौ है, अबार दो-च्यार ग्राहकां सूं तौ मिळ लेऊं। काल ई ना-ना करतां लगैटगै साढी च्यार सौ सेयरां रौ सौदौ हुयौ हौ। थारी म्हनैं बरसगांठ तौ फळी....।’
    ‘तौ जावौ भगत, आज म्हारी बासी बरसगांठ है। कीं न कीं फायदौ जरूर हुवैला ई....।’
    भगवती रै सबदां सूं निकळ्योड़ौ कटाक्ष बींनैं चुभ्यौ अर उणरी बौखळाहट मूंढै पर साफ दीख रैयी ही। बौ लुगाई री आज्ञा रौ पालण करतौ थकौ आपरौ पोर्टफोलियौ उठा’र कमरै रै बारै पग धर्याै।
    बीं कमरै सूं बारै पग राख्यौ, बीं सूं पैलां ई अेयर कंडीसनर चालू कर्याै। जावतां-जावतां बीमार लुगाई रै माथै पर हाथ राख्यौ अर मीठै सबदां में ढाढस बंधायी, ‘भगवती, थारै कीं नीं हुयौ है। थोड़ौ हियौ मजबूत राख....इण बगत खड़ै होवणै री जरूरत नीं है। थोड़ै बगत खातर आराम कर....मन नैं काठौ राख।’
    कमरै रौ बारणौ बंद हुवै उणसूं पैलां ई भगवती चिरळा’र सुणायौ, ‘ठीक है, कोई बात नीं है, म्हैं तौ पड़ी रैवूंली थोड़ै बगत क्यूं, आखी भोर, दुपारै अर सिंझ्या तांई....थांनैं कांई परवाह? थंारै तौ ग्राहक, लेण-देण अर बजार, इण सिवाय कोई है ई कोनी, म्हैं चोखी तरै जाणूं कै म्हारै सारू थारै हियै में कठैई ठौड़ नीं है। थांनैं इण बेडोळ लुगाई रै कनै बैठण री कदैई मन में आयी?’
    भगवती मन में सोच लियौ कै आज किणी पर नाराज नीं होवणौ है। सांमै पड़्यै फूलां रै गुलदान मांय तीन-च्यार रंग रा गुलाब रा फूल ताजा लाग्योड़ा हा, बांरी सौरम आय रैयी ही। भीमराज बरसगांठ रै बहानै अेक दिन पैलां भोर रा लेय आयौ हौ। बां फूलां नैं गुलदान मांय राखतां उण बतायौ हौ, ‘भगवती, गुलाब रा अै फूल कांई भाव हुया है, ठा है थनैं? अेक-अेक फूल डेढ-डेढ रुपियै रौ। उण रहमान बागवान खूंणै मांय फूलां री नवी दूकान खोली है। बठै माळी तौ दो रुपिया सूं कम गुलाब बेचतौ ई कोनी हौ। बौ बागवान कैवै हौ कै म्हारी दुकान रा गुलाबां में आ अेक स्पेसियलिटी है कै अै तीन दिनां तांई बियां’र बियां पड़्या रैवैला....अर जे अेयर कंडीसनर कमरै में राखोला तौ अेक हफ्तै तांई आंरौ कीं कोनी बिगड़ैला।’ साथै ई भगवती नैं औ संकेत पण कर्याै कै ठीक इणी तरै सूं जे कंपनी रा सेयर पांच बरस पैलां ई अेक कानी राख लेवता तौ आज बीं रा दुगणा भाव होय जावता अर आपांनैं अणूतौ ई फायदौ हुवतौ।
    भगवती जद कैयो कै अैड़ी बातां कर’र ग्राहकां रै गळै में सेयर घालौ तौ इणसूं तौ चोखौ गुलाब री खेती कै पछै गुलाब रा छोटा पौधां री कलमां करवाय लेता? लुगाई री अैड़ी हंसी-मजाक करणै रै तरीकै पर निछावर हुंवती टैम बै उणरै गाल पर होळै-सी’क चपत लगाय’र बै ग्राहकां सूं मिळण खातर निकळ पड़ता।
    गुलाब रौ फूल। बरसगांठ। बरसगांठ रै बहानै पारटी। पारटी ई कठै? बसंत बिहार रै जगमगातै होटल में। भीमराज इणी बहानै आपरै खास-खास ग्राहकां नैं नूंतौ दियौ हौ, पण भगवती बठै नीं ही। म्हैं तौ जाणतौ हौ, भगवती थनैं बीं भीड़ में मजौ कोनी आवैला....म्हैं सोच रैयौ हौ कै औ नूंवौ सैट पैर’र थूं सैं रै बिचाळै ऊभी रैईजै, मोटौ केक ई त्यार करवाऊं हूं। थूं मैणबत्तियां  नैं फूंक मार’र बुझा दियै....पण औ म्हैं जाणूं हूं कै थनै अै सै पसंद कोनी, पण म्हैं इण बहानै खास गाहकां नैं नूंत सकूं....यू सी!
    भीमराज री अै सै चालां ही। भगवती आं चालां नैं नीं समझै, अैड़ी बात कोनी ही। बा सै समझै ही। बा फूलां री सजावट पर सूं आपरी मींट हटायली। बा बिस्तर सूं ऊभी होय’र ड्रेसिंग टेबल रै कनै राख्योड़ी कुरसी पर धीरै-सै बैठगी।
    आपरै उणियारै नैं देख्यां बिना बीं सूं रैईज्यौ कोनी। लारलै कीं बरसां सूं औ बीं रौ रोजीनै रौ नियम सो होयग्यौ हौ। बा सिनान कर’र कपड़ा बदळ्यां पछै घणी ताळ तांई चुपचाप ड्रेसिंग टेबल रै आगै दरपण में टकटकी लगाय’र बैठी रैवती। लिलाड़ पर डावै कानी पड़्योड़ी छियां रौ चकतौ हौ। आ छियां डावी भृकुटी नै डाक’र लगैटगै आंख्यां तांई फैलगी ही। देखण वाळै री आंख्यां बीं रै तेजसी आंख्यां अथवा नुकीलै नाक पर नीं, सैं सूं पैलां मूंढै नैं कुरूप कर देवणै वाळी बीं छियां पर ई पड़ती ही अर पछै बठै सूं ई पाछी हट जावती।
    ‘बाकी म्हैं कांई बिल्कुल बेडोळी लागूं हूं?’ सोचती थकी बा हाथ रै रुमाल या दूजी किणी चीज सूं लिलाड़ रौ बौ भाग ढक देवती अर बाकी आपरै पूरै फूठरै चेहरै नैं निरखती रैवती। आपरै पड़बिंब नैं ई खरी मींट सूं देख’र पछै कैवती, ‘कांई म्हैं बिल्कुल बेडोळी हूं।’
    पण आज औ सवाल नीं उठ्यौ। आज मधुकर कैड़ी अजीब बात करग्यौ, भगवती बाई रौ पगफेरौ....।
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    बीं री उण बगत तौ कांई उमर ही? कदाक सात बरस पूरा हुया हा अर आठवों बरस लाग्यौ हौ। कृष्णराज री चाल में रैवतौ हौ, बां दिनां री बात है। पड़ोस में घनस्याम रैवतौ हौ। हमेसा भोर रा घर सूं बारै निकळती बगत कनै वाळै कमरै मांय नस घाल’र कठै गई म्हारी भगवती बेटी....। अर पाठ भणती छोड’र बिचाळै ई बा राधेस्याम रै कनै ऊभ जावती, बींनैं देखतां ई राधेस्याम री आंख्यां में चमक आय जावती, ‘म्हारी बेटूड़ी, थारौ मूंढौ देख’र निकळूं तद फतेह ई फतेह।’ घनस्याम आ बात भगवती रै मां-बाप सांमै ई कैवता। तद उणरौ हेताळू बाप राधेस्याम ई घनस्याम रै स्वर में स्वर मिलातां कैवतौ, ‘हां घनस्याम, म्हारौ ई नियम है, बजार जावती बगत घर री थळकण पर पग धरण सूं पैलां ई म्हैं भगवती रौ मूंढौ देख लेऊं हूं.... आपां पैलां कियां रैवता हा? म्हैं जयपुर नौकरी खातर आयौ तद तौ बिल्कुल लंगोटी में ई हौ....महादेव रै जावती बगत आवण वाळै मुरलीधर रै टूटै-फूटै घर रै हेठै अेक ओरड़ी में दूजा च्यार मिनखां रै सागै पड़्या रैवता हा। म्हारै इण रमेस अर महेस रै पछै भगवती रौ जलम हुयौ अर बिनां पगड़ी दियां औ घर मिळग्यौ। घर मिळ्यौ अर नौकरी रै बजाय खुद रौ धंधौ सरू कर्याै। अर अबै देखौ नीं....लाडेसर हुयी है....अर बीं रै आ छठी औलाद ई लाडेसर है....। बौ मुरलीधर जोसी कैवतौ हौ- रतिलाल, देख्यौ इण छोरी रौ पगफेरौ।’
    भारत-पाकिस्तान रै जुद्ध रै कारण कीं तौ मुरली अर रतिलाल रा भाग पैलै दिन सूं ई घिरग्या हुवैला, बाकी सै भगवती बेटी रै पगफेरै सूं मालदार बण्या होवैला? कै पछै सगळां रै खजानौ खोलण री इसी कोई कूंची मिळगी हुवैला? भगवती, कांता, सांता, रीटा, मीता?
    पण फेरूं इण भगवती, कांता सांता, रीटा मंडळी रौ कांई हुयौ हुवैला? सांता खुद आपरै भाग्य री किणी कूंची स्वरूप क्यूं कोनी बणी? भणणै में हुंसियार ही, इणमें बुद्धि ई साधारण नीं ही, फेरूं ई दसवीं में मुस्किल सूं पिचपन प्रतिसत नंबर आया। आसा तौ ही कै इस्कूल में तौ पैलौ नंबर उणरौ ई हुवैला अर कॉलेज री भणाई बिचाळै ई छोडणी पड़ी ही। बौ राधेस्याम, अबार तौ बौ सेठ राधेस्याम कहावै, सुगन वाळी छोरी नैं भणाणै सारू प्रोफेसर राख्यौ हौ पण परीक्षा दीनी इंटर सूं जूनियर में जावणै रै बदळै इणरै लिलाड़ रै घाव री परवा नीं करण वाळै स्वारथी वर रै साथै। राधेस्याम सेठ बडै धूमधाम सूं उण सागै उणरौ ब्याव कर दियौ।
    भीमराज स्वारथी हौ। भगवती नैं उणरी असलियत रौ पतौ जद लाग्यौ तद बात घणी आगै बधगी ही। आपणै मूंढै नै बदसूरत करण वाळै संहार री चिंता नीं करणै वाळै जवान खातर भगवती रै हियै में असीम उत्साह प्रगट हुयौ हौ। अेकांत कद मिळै अर कद हियै में प्रगटतै अलेखूं झरणां नैं किणी अदृश्य जळ री धारावां में समाविस्ट कर’र धणी पर स्नेहाभिसेक रौ आरंभ करै। भगवती लगैटगै उद्विग्र होयनै भीमराज नैं उडीक रैयी ही....।
    सौदै में सेठ राधेस्याम भीमराज नैं दो सामग्री बेसी दी ही। समदर दिखै इण भांत ऊंचौ, नान्हौ अर फूठरौ अर सगळी घरबरती री चीज-वस्तुवां सूं सज्योड़ो फ्लैट। इणरै अलावा सेयर बजार में अपणै ऑफिस री लगैटगै मोनोपोली वाळी सबब्रोकरशिप। सुसरै री देखरेख में तालीम लेवतै थकै अर उणरै आधै काम रौ भार संभाळ सकै बित्ती सूझबूझ ई जंवाई में आयगी ही। भगवती साथै जोड़ी ई जचगी अर बा ई ठीक जाग्यां पूगगी। पावणौ अैड़ौ है कै हर तरै सूं काम लियौ जाय सकै।
    पण भगवती सारू औ मिनख?
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    ‘देख भगवती.... कठै है थूं? देख, म्हारी बात सुण....म्हैं गरीब मां-बाप रौ चौथै नंबर रौ बेटौ हूं। म्हारा तीनूं मोटा भाई कोई खास भण-लिख नीं सक्या। कठै सूं भणता? मुंबई में तीन च्यार हजार रुपिया कमावण वाळै कारकुन रा बेटा कारकुन ई बण्या रैया। अैड़ी नौकरी रै काम रौ हक बजा सकै, इतरौ आखरज्ञान तौ म्हारै भायां नैं मिळ्यौ है। दो भाई कपड़ै बजार में गुमास्तै रौ काम करै, तीजौ भाई पंसारी बजार में गोडाउन कीपर है। म्हनैं इण जीवण मांय कोई खास आकर्षण कोनी लाग्यौ। म्हैं अेक दफै समदर में कूदण नैं त्यार होयग्यौ हौ, अैड़ी नादारी मांय जीवण बीतणै सूं तौ मरणौ भलौ है अर बठै अेक स्याणै मिनख सूं भेंटा हुया। उण कैयौ भला आदमी, मरणै तांई त्यार हुवै हौ इणसूं तौ जीवण रै साथै कोई दूजी तरै रौ जुद्ध खेलणै री त्यारी करै तौ आवण वाळै बगत में थारी हालत नैं सुखी बणा देऊंला, सुणै है कै नीं? आ बात कैवणियौ सज्जन हौ मूळदास काका....कदाक बै रात रा देरी सूं क्लब सूं आ रैया हुवैला अर म्हनैं मैरीन ड्राइव रै किनारै पर सून्याड़ में बैठ्यौ देख्यौ हौ। मूळदास जमानै रौ अनुभवी आदमी हौ। थूं समझी का नीं कै म्हारौ इरादौ कांई....अजै म्हारी बात पूरी नीं हुयी है भगवती....म्हारी आंख्यां नैं अंधारै में देखण रौ अभ्यास होयग्यौ। अंधारै में थारौ मूंढौ भी दीख रैयौ है। थारौ डील ई दीस रैयौ है। बस, म्हनैं इणी री जरूरत है। म्हनैं इतरी गहराई में कोनी उतरणौ है। मूळदास ई आ इज चेतावणी दी ही। थारी सूझबूझ में जावण रौ मन नीं हुवै तौ थारै सारू तौ औ घर ई ठीक है। बाणियै रै बेटै नैं ज्यादा कामधंधौ मिळ जावै तौ पछै उणनैं चाईजै ई कांई?....नादारी रै कनै सूं छूटण सारू तौ म्हनैं सै मंजूर हा....पछै सौभाग्य सूं थारै जिसी भणी-गुणी लुगाई म्हनैं मिळी है। बियां म्हैं ई कॉलेज में भण्योड़ौ हूं। तीनूं मोटै भायां मिळनै म्हनैं भणायौ हौ। म्हनैं म्हारी भोजायां बारी-बारी सूं जीमावती रैयी....हां, हां भगवती, थारै तीन जेठाणियां है, पण थूं उणां सूं मिळण नै नीं जा सकती, थूं राधेस्याम सेठ जैड़ै मोटै सेयर दलाल री बेटी है। थारै कनैं भोजायां आवणी चाईजै। म्हनैं कित्ती बार कैयौ, पण अैड़ौ नीं हुयौ। बापड़ी अणपढ भोजाई री आ इच्छा ही कै आपरै इण कामदेव जैड़ै फूठरै देवर खातर राजकुमारी लावणी है। राजकुमारी तौ कठै सूं आवती, पण फेरूं ई म्हारी भोजायां रै आंख्यां अर हियै नैं संतोस मिळै अैड़ी कोई गांव री गरीब राजकुमारी लावण नैं त्यार ही।
    भगवती म्हनैं आज बोलण दै। ब्याव री पैली रात धणी-लुगाई नैं बातां करण रौ घणौ बगत कोनी मिळ्यौ। म्हैं ई कॉलेज रै दिनां बीं कल्पनालोक री राजकुमारी रै सागै ब्याव री पैली रात नै बात्यां करणै खातर कीं संवाद त्यार कर राख्या हा, पण बै सगळी रचनावां भूलग्यौ। अबै तौ जे कोई चीज याद है तौ वै फगत सेयर बाजार री स्क्रीटां रा चढाव-उतार।’
    भीमराज री आवाज में जरा ई सिकायत नीं ही, पण उणरै व्यवहार रै आगै भगवती कोई सिकायत नीं कर बैठै, बीं सारू दीवार खड़ी करणै वाळी ठंडक उणरी बोली में ही।
    ‘म्हैं थनैं ठंडी माटी रौ मिनख लाग रैयौ हूं। इण कमरै मांय उजाळौ पसर जावै तौ आपांरै सगळा सपनां री बरबादी सूं आपां दोनां नैं कोई थोड़ौ ई बचाय सकै है, औ अंधारौ ई तौ....अंधारै में आ राख म्हारै निजर कोनी आवै अर अैड़ै अंधारै में म्हैं चुपचाप जिकी कीं रचना कर लेऊंला बां म्हा दोनूं नैं उबार लेसी....।’
    भगवती रै सुपनां रै जीवण अंगां रा सै अंदाज बीं रात छिन्न-भिन्न होयग्या हा। अेक सौदै री लेण-देण में बा खुद खाली अेक-दूजै रै हाथां घूम-फिर’र आयोड़ी सामग्री ही। किणी औ मोल चुकायौ हौ। बीं सामग्री सूं मुगती पावण खातर, किणी बा सामग्री मंजूर करणै खातर कीमत मांगी ही।
    अर ज्योतसी तौ बतायौ हौ, बाई थारौ पगफेरौ तौ....।
    फेरूं ज्योतसी री कैयोड़ी बात कियां झूठी होय सकै है? भगवती तीन-च्यार बरस रै दरम्यान ई फ्लैट बदळ्यौ हौ। साढी छह सौ स्कवेयर फीट रै बदळै साढी सोळै सौ स्कवेयर फीट री परिधि वाळौ। समदर नैं अळघै सूं देख’र संतोख नीं हुवै। आभै चुंबी इमारत रै लारै वाळी कपाउंड री दीवारां सूं समदर री लहरां रौ सास्वत संगीत सुणण नै मिळै, बिसौ फ्लैट हौ।
    पण ‘आ तौ म्हारै पसीनै री कमाई है।’ औ सोचती बगत बौ कांप उठतौ हौ। सांमी राधेस्याम सेठ री बराबर स्पस्टीकरण मांगती मुखमुद्रा अर इणरै साथै मुरझायोड़ै चेहरै रौ मतळब भाग रीअयोग्य घावां वाळी भगवती रै चेहरै री असंतुस्टि। उणरौ सारौ पुरुसार्थ आं दो चेहरां री परिधि रै बिचाळै पिसीज रैयौ हौ।
    भगवती फेरूं अेक दऊै दरपण मांय टकटकी लगाय’र देख्यौ। अमेरीका सूं इणरी भायली सोभना लिख्यौ हौ, ‘भगवती, अबै तौ भारत में ई प्लास्टिक सर्जरी वाळा घणा ई डाक्टर है, थारै कांई बीमारी है? बठै ठीक नीं समझती हुवै तौ अठै आयजा। अेक ऑपरेसन अर कीं हफ्तां री देखरेख। बठै किणी नैं ठा ई नीं पड़ैला कै इण मिनख नैं कदैई देख्यौ हौ।’
    भगवती भीमराज नैं सोभना रौ कागद बंचायौ हौ अर बौ कांई बोल्यौ? उणरा अै बोल ठीक ई तौ हा। इणरी तरफदारी करण खातर आपणी चौंतीसवीं बरसगांठ रै दूजै दिन पं. मधुकर नैं बुलायौ हौ। उण कैयौ हौ, ‘ना बाई, अपणै ग्रहां नैं डिस्टर्ब नीं करणा। मधुकर आपरी बात रौ असर नाखण सारू कदैई अंग्रेजी सबदां रा उपयोग कर लेवतौ हौ।’
    ‘पण ऑपरेसन कांई अड़चन करै है?’
    ‘ना-ना, सनि री अैड़ी क्रूर मींट है तद ऑपरेसन रौ रिस्क नीं लेवणौ चाईजै। देख बाई, इण सनि री दसा नीं उतरै तद तांई तौ ऑपरेसन करावणौ इज कोनी अर बाई, थारौ पगफेरौ तौ सै रै खातर सुभ है।’
    सनि री दसा तौ सात बरसां रै पछै उतरण वाळी ही। वा तौ ठीक है, पण भीमराज थोड़ौ ई जोस नीं दिखायौ अर पुसकळ आराम में डूब्यै राधेस्याम सेठ ई सोभवना रै प्रस्ताव री बात नैं समझणै रै पछै ई मूंढै नैं कियां मचकोड़्यौ हौ, ‘औ चेहरौ तौ भगवान रै दियोड़ौ है, औ कांई मिनख रै हाथ सूं बदळीजै भलां? अखबार वाळा तौ इयां ई लिखता रैवै। कदाक बिल्कुल उलटौ होय जावै तौ? अबार तौ औ देखण जिसौ मूंढौ है, बीं पर फेरूं चीरफाड़ रा घाव। नीं बेटी, थारै फेरूं कुणसौ दुख है। इत्तौ लायक आपणौ भीमराज, देखजै अबकाळै बरस में सेयर बजार मांय इणरौ खुद रौ स्वतंत्र कार्ड नीं बणै तौ म्हनैं कैय दीजै। बेटी भगवती, थारौ पगफेरौ....।’
    भगवती रै पगफेरै सूं भीमराज आपरै स्वर्गीय बाप रै नांव सूं बिरादरी वाळां खातर छात्रावास बणायौ आपरै गांव मांय। बठै सगळै गांववाळां नैं जीमण दियौ हौ। पूरी पांच मिठायां बणायी ही। पण भगवती नैं बठै रौ वातावरण कियां चोखौ लागै? कठै मुंबई रौ अेयरकंडीसनर फ्लैट अर कठै गांव री बाळू रेत रा धोरा अर ऊपर सूं गरमी रौ परसेवौ।
    अर ज्योतसी मधुकर आ बात ई कैयी ही कै भगवती बाई, जिकै मिनख पर रूठ जावै तौ बीं मिनख री धन-दौलत चली जावै है? भगवती रौ किण पर रूठणौ बाकी रैयौ हौ? भगवती बीं रात अेक-अेक मिनख नैं याद कर्याै।
    आधी रात हुवण नै आयी ही, फेरूं ई भीमराज घरां कोनी आयौ हौ। बौ उणनैं बताय’र ई कोनी गयौ हौ कै म्हैं रात रा सहर में बण्योड़ै नूंवै अर आलीसान थियेटर में फिल्मी कलाकारां नैं इनाम बांटण नैं जाऊं हूं। उण जळसै री अध्यक्षता सेठ राधेस्याम करै हा अर सेयर दलाल भीमराज मुख्य अतिथि हा। बाप अर धणी दोनूं जळसै रा अतिथि, किणरै पुन-परताप? थूं आज साथै हुवती तौ....पण थनैं बठै चोखौ नीं लागतौ, म्हैं जाणूं हूं नीं। आ इज कैवैला।
    घर रै कंपाउड री दीवार पर पूनम री रात रौ गैलौ समदर पछाड़ौ खावणौ सरू कर दियौ हौ। भगवती कोसिस कर’र समदर री पक्की दीवार पर चढगी। दीवार री चौड़ाई डेढ फीट री ही। बा बठै धीरै-धीरै पगां सूं चालणौ सरू कर्याै हौ। पगां रै निसाणां रै लारै बा कीं छोडती जा रैयी ही- भागसाळी भगवती रै पगां रै चिहड्ढनां पर अभिसाप।
    पण समदर रै पागल तूफान री पछाड़ में बौ अभिसाप किणी सुण्यौ कांई? किणी झेल्यौ कांई?
    आं सवालां रौ पड़ूत्तर लेवण खातर भगवती बठै नीं ही।

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