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अभाग्यौ

चित्र : अजीत मीणा
म्हैं जळम सूं ई अभाग्यौ हूं। जगत में आयो उण सूं पैलां बाप चल बस्यौ, च्यार बरस रो हुयौ उण सूं पैलां मां सरग पूग्यां अर बारै मईनां पूरां हुवतै ई तीन बरस रो इकलोतौ बीरौ अर इरै ठीक छठै महीनै बीचली बहण रो भख लियौ। म्हैं अेकलौ किंण खातर जीवतौ रह्यौ, इण बात री म्हनैं अजै तक ठाह नीं पड़ी। कदाक अभाग्यै रौ
ओछौपण रो असर दिखावण रै खातर ऊपर आळौ म्हनै जीवतौ राख्यौ हुसी। पण इंयां किं थोड़ौ बखत लाग्यौ तो बण्यौ नीं। मां-बाप अर भाई बेहण री मौत रै पछै म्हारी किस्मत जाणै थाकग्यी ई बियां प्रसंग मौको देखण ताई थमग्यौ। पण दुनियां रै मानखे तांई इत्तौ ई बस चालै हो। म्हारी गिणती अभाग्यौ अर खुड़पगै में हुवण लाग्यौं
    मां-बाप, भाई बेहण गुमावतां म्हारी देखभाळ री ताबैदारी नानै-नानी ऊपर आ पड़ी इण में पण बे सघळां भेळा‘ई रैवतां हां, काम-धंधौ भेळौ हो। अर परिवार में पण मेळ घणौ‘ई सांतरौ हो कै जमीन-जायदाद रौ बंटवारौ करण रौ के जुदां हुवण रौ विचार मनां में किणी रै आयों नीं हो। मानूं म्हैं खोळौ गुमायौ पण तुरंत ईं भगवान री किरपां सूं खोळा म्हनै मिलग्यौ। मां-बाप रै लाड-हेत ने कि समझ सक्यौ पण लोगा रै आंख्यां में बिना मां-बाप रौ टबार गिणीज तो हो। पण आज म्हैं जद मोटौ हुग्यौ हूं अर उमर रै बरोबर समझदारी रै साथै दूजां री मांओ ने देखूं हूं जणा म्हनै लखावै के म्हारां नाना-नानी मां-बाप सूं चिंना‘क कम नीं उतरया है। म्है अभाग्यौ हुंवतौ थकां औ म्हारौ सुभाग हो।
    म्हारै नानांणै में पांच मामा, पण मासी अेक ई नी ही चौखे भाग रै कारण कदाक ओई पण हुयौ, कुण जाणै चाहे जियां हुणै पण नांनौ, नांनी अर म्हारां पांच मामाऔं रौ म्हारै माथै अथाग हेत राखातां हा। म्हनै लौग-बाग अभाग्यौ केवतां हा पण नानांणै आळा म्हनै जठै तक याद है बठै तक, म्हनै अभाग्यौ नीं मानता हा। उल्टै‘रा सीगळी हकीगत ध्यान हुवतां थकां म्हारा नानौं-नानी, मांमा-मांमी सुगनीक मानता हां। बै म्हनै बिसणु रौ अवतार ई केवतां हां। म्हैं म्हारै देवलोग हुयेड़ै मां-बाप रौ अभाग्यौ नीवड़यौ हो, पण इण‘रै पछै सीघळां रौ डर थौड़ो‘क कम ओछौ हुयौ हो। कारण कै म्हारै नांनै‘रै पांचौ बेटा में किणी‘रे की नीं हुयौं। नाना-नानीं, मामा-मामीं पण साजां-संवरां रह्या अर नांनाणै में म्हारौ जिके दिन सूं रैवणौ हुयौ उण दिन सूं काम-धन्धै में, अर खेती में घणौ फळापौ हुवतौ रह्यो। इण खातर मान लियो हो के म्हैं माडाणी ई अभाग्यौ गिणीज्यौ हो। म्हारै दादाणै में सागी रिस्तै आळा रै अळावां बीजां किणी ने म्हारौ अभाग्यौ पणौ अखरतौ नीं हो, इयां मानणै में आयो।
    परंतु म्हैं बीजां किणी तांई नीं तो पण म्हारै मन में तो अभाग्यौ आळी बांत तो घर कर गई ही। म्हारौ अभाग्यौ पण दूजां किंणी ने नीे तो म्हनै खुद ने तो थोड़ो-घणो मन में अखरतौ हो। डाबरपणै में म्हैं घणौं मांदो रैवतौ, थोड़ौ मोटौ हुयां पछै भायलां-पापेलां सागै खेलतां-कूदतां भौंड फुडालायां करतौ, म्हारै भौड़ करतौ, म्हारै भौड़ रै पाट्टी बंधोड़ी रेवती ही। अेकबार तो डागळै रै ऊपर‘लै पगोथिये सूं पड़ियो जणां दो दिनां तई बैहोस पड्यौ रह्यौ। इसी छोटी-मोटी घटनावां कंई दफै बणती, जेरै परिणाम सूं म्हारै डील माथै घणा‘ई चौट्यां‘रा सैनाण अजै ई है। पण म्हैं पड़तौ-आखड़तौ अबै मोटौ हुग्यौ हूं। अेकदम जवान-जौध हुग्यौ हूं। अबै म्हनै पचीसवौ लाग्यौ हैं नांना-नांनी म्हारै ब्याव‘री चिनत्यां करण लाग्यां है। म्हनै भणावी रह्या है। अबार म्हैं बी.ए रै दूजै साल में हूं। सीनीयर सैकेन्डरी पास हुयौ जणां सूं म्हारैं तांई बीनणी ढूंढण लाग्यां हां अर जद सूं अे बात्यां सरू हुयी है उण बखत सूं पाछौ म्हारै अभाग्यै रौ म्हनै डर लागण लाग्यौ है।

    पैली दफै....
    पैली दफै म्हारै मन में कैई-कैई बात्यां मन में उठी ही उण रौ विचार करतां आजै म्हारौ मन हेत सूं हबोळां लैवण लागै है। म्हारै सैज्यां‘री आ लीछमी घणी फुटरी ही, सुखी घर री ही, घणौ हेत राखण आळी अर स्याणीं-समझणीं ही, म्हैं बींने पसंद आग्यौ हो, बां म्हनै जचंगी ही। सीघळी बात्यां लगेटगै नीकीं हुग्यी ही। पण अचाणचक बीनै ताव चढ़यौ, कई दिनां तई उतर्यौ नीं हो जणा इस्पताल में भरती राखी ही। बीमारी रौ किं ठां नीं पड़यौ अर बां अेक मीनै पछै चल बसी।

    दूजी दफै ......
    दूजी दफै पण सारी बात्यां ठीक-ठाक ही, पण म्हारा भावी सुसरौ जळम-कुंडळी मिळावण रो कैयौ अर बां नीं मिळीं।
    इण कुंडळी मिळावण रै फैर माथै अेक नवीं हकीकत सामनै आई। ज्योतिष सास्त्र रां जाणकारों  नै अेड़ौ मतबल बतायौ कै म्हारी कुंडळी अैड़ी अटपटी अर टाळवीं है कै भाग सूं ई किणी छौरी री कुंडळी सागै मेळ खावैं आ बांत जाण्यां पछै म्हारा नानां-नानीं कुंडळी मिळावण रौ कैवण‘रे सागै सगपण नीं करणै रौ नक्कीं कर्यौ।

    तीजी दफै .....
    तीजी दफै थोड़ी-घणी हिम्मत जुटाय‘र म्हैं घर आळौ रै बंधनौ ने तोड़ा‘र थौड़ो‘क आगै बढ़यौ हो। म्हैं म्हारै मतै ई अेक छोरी ने पसंद कर लियौ। म्हैं दोनूं कॉलेज में सागै‘ई भणतां हां। थोड़ां‘क मितर जैडां हां। म्हनै लाग्यौ के आ मितरता थौड़ी-घणी चेष्टां करणै सूं कदाक हेत में बदळ जासी। म्हनैं किं सफळता मिळी। मितरता बणी तो ईसी बणी के पछै बींण ई अेक दिन म्हारै सागै ब्याव करण‘री बांत कैयी ई जणा म्हैं मन में घणोई राजी हुयौ। जीवण रो अेक घणौ-महताऊ सवाल म्हैं हळ करयौ हो। म्हैं घणै हरख-कौड सूं रैवण लाग्यौ। पण आ बात अबै घर रै बुढै-बडैरौं रै कानां में पुगी उणां सूं पैलां इतिहास रो जाणै पूनरावरतन हुयौ।
    म्हारै हेताळूं रो अेक साथी ज्योतिस-सास्त्र रो जबरौ जाणकार हो। उण नै आपरै बैली खनै म्हारी कुंडळी देखण खातर मांगी। उणनै कुंडळी देख‘र बतायौ के म्हारै कुंडळी में घातीळौ मंगळ है, उण री गिणत रै मुजब होसियार भांतःरा लुंठा गिरहों बिना रो कोईं पण मिनख जै म्हारै कुंडळी जैड़ा गिरह धरावती छौरी सागै ब्याव करै तो थोड़ै बखत में उण री मौत हुवै।
    निसफलता रै परिणाम मिळणै सूं म्हारौ तीजो हेताळूं परसंग री ठांह म्हारै नांनै-नानी ने पड़ी। बींया ने म्हारी अेक धरम री बहण रै मारफत ई बात री बिगतां जाणी अर बें म्हारै जियां घणां दुःखी हुयां। म्हारौ साचे बें घणोई करतां हा पण इण छैकड़ले परसंग री बिगतां सुण्यां पछै उण‘रौ सोच घणौ बधग्यौ। अबै उणा रै मन में आ बात पक्की बैठग्यी के चायै किं करणौं पडै़ ईयरौ घर बसावणौ है, बीयां ने आ बांत घणी जरूरी लखाई। बीयां घर में ओ तय कर्यौ हो के सामै छोरी आळा जे कुंडळी दिखावण री बातं राखै तां बात आगै करणीं नीं है।

    अर अेक दिन चौथी दफै।
    म्हैं चौथी दफै म्हारी जोड़ायत बनाणै री उम्मीद राखतां अेक जवान जोध छोरी सामैं धड़कते काळजै अर भावी रै डर री उधेड़-बुण सागै उभौ रह्यौ। बीनै देखतां पाण म्हारै मनां में खटकौ बैठग्यौ। बां घणी सोहावणी-सुकोमल, सरमाळी बीं छौरी ने देखतां म्हारौ मन खिंच उठ्यौ। नीं नीं, इण बेकसूर ने तो म्हारै कुर्र काळ रौ भोग नीं बणन देऊं। म्हारौ मन दया रै भाव ईतौ भरग्यौ कै म्हैं दौड‘र बीरै खनै बैठ‘र उणरी आंख्यां में आंख्यां घाळ‘र माथै पर हाथ फैरतां ईयां केणै‘रो मन हुयौ के चली जा अठै सूं म्हनैं रोकै राखेली पून पण थनै नीं रोक सकै इति दूर चली जा। म्हारै दूरभाग री छियां तक थारै माथै नीं पड़ण देवणी चाऊं। म्हैं अभाग्यौ हूं, म्हारै साथै भाग्य जोड‘र थारै सानै-रूपै जिस्सौ चोखै भाग्य नै कथीर नीं बणा..... भाज अठै सूं भाज। पण म्हारै सूं ईयां कीं नीं केइज्यौ। थै म्हनै साचौ पूछौ तो म्हारै मन री आ बात है के म्हैं ई जवान छौरी‘नै पैली बार देखते‘ई इण सूं हेत हुग्यौ हो। पण म्हैं इणनै म्हारै फुटै करम रो भख नीं चढाण देवणौ चाऊं। म्हनै इणरै पछै ईयां लखायौ के म्हारै जिस्से अभाग्यै‘रे भाग में इसी जवान छोरी लिख्यौड़ी नीं होय सकै, जै हुवै तो पण बां म्हारै सागै टीक नीं सकै।

    ‘थे जळम-कुडंळी ने मिळावण में भरोसो राखौ हो ?’ म्हारै नानाजी म्हारै नूंवै हुवण आळै सुसरैजी नै पूछयौ।
    ‘जळम-कुडंळी मिळावण में ? म्हैं इसे फालतूं रै पचड़ै में नीं पडूं। मानणतौ ई नीं हो, म्है इण फाळतूं रे पचड़ै रो विरोधी हूं। इण फाळतूं रे पचड़ै रे कारण सूं घणकरां चौखा संबंध हुवतां रैगयां हैं। कई‘क जवान जौध टाबरां ने हेताळू काळजै सूं विछौह सूं हाथ धौणो पड़यौ है। जै थै ई इण उगणीसवीं सदी रै अरथहीन रिवाज नै थोड़ौ-घणौ महताऊ देणै रै हिमायती हो तो म्हनै घणी दिलगीरी रै सागै इण बात नै आगै बढ़णै सूं रोकणी पड़सी।’
    ‘नीं.......नीं......नीं....... म्हारौ नांनौ बोल उठयौ। म्हैं पण थारै आळै नाथ ई रिवाज रौ घणौ विरोधी हूं।
    ‘अबै की खास अड़चन नीं आवै।’ म्हारा नुंवा सुसरोजी बोल्यां अर पछै किं अड़चण नीं आई।
    म्हानै दोनां नै साथै घूमण-फिरण री घणी छूट मिळग्यी ही। थोडै‘क दिनों में म्हैं दोनूं अेक-दूजां रै घणकरां घुळ-मिळग्या हा। म्हैं देख्यौ के म्हारै जित्यै ई उत्सुकता सूं बा म्हनै हेत करती ही। घणी ई जळदी म्हानै दौनूं ने आ ठां लाग्यी ही के म्हैं दोनूं अेक-दूजै बिनां नी रैय सकां। जियां-जियां म्हारै हेत री सच्चाई अर उतकटतां पूखतां हुवण लागी बियां-बियां म्हारै मन री पीड़ा बधती जांवती ही। बांर-बांर म्हारै मन में अेक ई सोच रैवतौ के जै पैलां आळै रौ हुयौ बीयां कदाक इरौ पण हुसी। बीच वाळी दो बचग्यी। कारण के बै दोनूं खास रूपाळी नीं हीं। म्हारै मन रो ओ भय‘रौ भारै म्हारै मिळण रो मजौ किरकिरौ कर देवतौ हो। म्हैं जठै-जठै घूमण ने जावतां जणा म्हारै मन में हमेसा ओ डर रैवतो कै ई खानी सूं दौड़ती आवती मोटर इण नै किचर नांखसै। बीं खानीं सूं तेज आवती बस ईं ने किचर देवेलां। म्हनै मन में लख्यां करतौ के बीतौड़ै दिनों रे पछै चावै जणा, चावै बीं जगै, चावै बठै सूं कीं न कीं तेजी सूं आवैलां अर म्हारी आंख्यां रे सामनै ईरां परखचां उड़ा दैसी। इयै डर रै कारणै मन में उपजैली सांवचेती ने म्हैं कब्जै में नीं राख सकतौ हो।
    म्हनैं लखायौ के ईसी भोळी-भाळी, ईसी हेताळू, ईसी हंसाळू छौरी म्हारै जिस्सै हतभागी रै करम में लिख्यौड़ी नीं है ...... अर नीं ई होई सकै। म्हारै मन में अेकदम नक्की हो कै म्हारौ दुरभाग ईं सुलक्षणी छौरी रौ भख नै बैठस्सी। ईसौ अजुगतौ कीं घट नीं जावै इण खातर नित रात‘रा भगवान ने अरज करतौ हौ। कई‘क दिन तो घणांई सुख‘रां बीत्या। सघळी बातां म्हारै मन रै मुजब ई चाळ रह्यी ही। म्हारै नानां-नांनी रै घणी जंच्यौड़ी बांता आई ही कै उणौ‘री तरै म्हारै सुसरै पण ब्याव करणै‘री उतावळ ही। अर थौड़ा‘ई दिनां पछै म्हारौ ब्याव करणौ तय हुयौ, कारण के ईण सूं पैलां कोई चौखो मुहरत नीं ढूंक रह्यौ हो।
    कई दिन तो लख्यौ कै म्हारी पैली अरज चौखो परिणाम ला रह्यी है। पण ओ बैम घणै लांबै बखत ताई टिक्यो कोनी। म्हारी अरज भगवान रै आगै पौंची नीवड़ी। ब्याव तय होवण रै च्यार दिनां पैलां अचाणचक बां मांदी पड़ग्यी। सरूंपौत मे थोड़ौ-घणौ ताव चढयौ हो पण म्हारौ काळजो तो सुणतै पण बैसग्यो हो। दूजै दिन पछै ताव तेज चढ़ग्यौ अर देखतां-देखतां तो मांदगी रौ रूप चिंत्याजनक बंणती गई। दाकधरौं रो काळजौ डोळण लाग्यो जणा म्हनै म्हारा फूटौड़ा करम बिसै अर उण‘री विघातक असरौ सूं कंई सकां रह्यी नीं। दाकधरां जद साव‘ई आसा छोड़ दीनी जणां म्हैं अेकबार फैर भगवान ने अरदास करणै मंदिर में बैठ्यो।
    बी रात रौ म्है घणौ‘ई रौयों। म्हैं रौवतां-रौवतां काळजै नै करड़ौ कर‘र भगवान ने भारी मन सूं केयौ कै हे परभु जै आ पाछी ठीक हुजावै तो म्है इण‘रै जीवण सूं दूर हट जास्यूं। म्हारै मन में ओ फैसलो करतां बखत सौं कै सैहन करनो पड्यौ हो। म्हनै किणीं तरै मन में जचं नीं रह्यौ हो पण म्हारै बीरै जीवण सूं दूर हटण सूं जै ईरौ जीव बच जावै तो म्हैं किणीं तरै रो भोग-भोगणै त्यार हो। म्हैं इण बांत नै भारी मन सूं तय कर लीनी ही। अर म्हैं इण बात माथै अटल रैवण रौ पक्कौ निराधार मन बणा लियौ हो। ‘‘बाधा’’ फळी। म्हारी इण बखत भगवान अरदास सुणली। बीरी तबियत में तीन-च्यार दिनौं में सुधार होवण लाग्यौ। अर बां थोड़ै दिनां पछै साजी-सवरी हुग्यी। म्हैं दोनूं ई जणा पाछा सागै-सागै घूमण-फिरण लाग्या। कैई दिनं तो बखत रै सागै बीयां ई चाळता रह्या। पण औ टिकाव घणौ लांबै बखत तई चालूं राख सकां बीयां म्हारै बस‘री बात नीं ही। कारण कै बड़ा-बडै़रा म्हारै ब्याज रौ दिन नक्की करणै‘री री तैयारी में लाग्यौड़ा हा। जै म्है भगवान ने साखी मान‘र लियौडै फैसले री पाळणां नीं करूं तो कदाक ब्याव पछै म्हनै आखी उमरभर बिछोड़ां भोगणौ पड़ै, इण बांत रो म्हनै मन में डर लखावतौ हो।
    अेक दिन म्हैं बींनै छाती करड़ी कर‘र केयौ, ‘आपांरौ ब्याव नीं हुवै तो ठीक है। म्हनै लखावै है कै आपारौ ओ जोड़ौ सुखी नीं रैय सकैलां। बां पळै‘क तो आंकळ-बांकळ हुग्यी ही। बां म्हारी आंख्यां में आंख्यां मांड‘र अेक मीट सूं दैखती रह्यी, पछै निजर नीचै कर‘र अखत पीड़ां सूं भर्यौड़ी बोली में बोली, म्हनैं पण ईयां ई लखावै है।’
    म्है कई दैर तंई सुनौ हुयोड़ौ बैठ्यो रह्यौ, पछै हियै में किं सोचतौ रह्यौ, बींरौ पडूŸार म्हारै कई देर तंई समझ में नीं आयौ। पछै म्हारै समझ में आयौ कै वां कदाक म्हारै दुरभागी गिरहौं री बांत जाणग्यी हैं म्हैं कंई कैवण लाग्यौ उण सूं पैलां बां आपरौ माथौ नीचौ कर‘र कह्यौ, ‘म्हनै पण बींया ई लागै है।’
    अबै अचंभै में पड़ण‘री बारी आई। बींरौ पडूŸार पळै‘क म्हारै समझ में नीं आयो। कंई ताळ पछै समझ में आयौ कै कदाक म्हारै दुरभागी गिरहौं री बांत्यां जाणग्यी है। म्हैं की खुळासौ करूं उण सूं पैळां आळै जियां माथौ नीच्यौ कर कह्यो। ‘तो थे सैंय की जाणग्या हो।’ केवण‘रे सागै-सागै बां अेक लांबौ सिसकारौ लियौ।
    ‘किं ? म्हैं .....म्हैं तो किं जाणतौ नीं। किं जाणग्या री बात्यां करौं हो ?’
    ‘जाणतां थकां अणजाण मत बणौ।’
    म्हैं उण रौ हाथ पपोळतै-पपोळतै म्हारै सामै कर्यौ, अर पूछ्यौ, ‘म्हैं साचौसाच ई कीं नीं जाणूं हूं। थूं म्हनैं केवणौ किं चावै है ? कंई‘क खुलासौ करै जणां तो जाणूं। केवै नीं, बांत कंई है?
    ‘म्हैं अभागण हूं। फूटोड़ै करमां री, म्हनै ठां है के म्हारै साथै जीवण जौड‘र कोई मिनख सुखी नीं रैय सकै। म्हैं थानै कैवण आळी ही कै आपां दोनूं अेक-दूजै सूं दूर हौय जावां तो ठीक रैयसी, पण म्हारौ मन मौंय सूं केयौ मान नीं रह्यौ हो।’ बो जोर सूं घांटो फाड्यौ।
    म्हैं अेक‘र तो हको-बकौ हुग्यौ ! बां थोड़ी सांत हुई जणा आपरी बांत बताई।
    पछै बीयै आपरी बांत कैई। उण रै पाघड़े सनि हो। पंडितां केह्योड़ौ हो कै ठीक गिरहौं रै बळ बिना रै सागै ईरौ ब्याव हुवै तो बो छोरौ सुखी नीं रैय सकैलां। म्हारै जिंयां बीरी कुंडळी में पण ब्याव रै बारै में गिरहौं घणां निमळां हां।
    म्हैं सुसरोजी री उतावळ नै समझग्यौ हो। म्हैं पछै तो कुंडळी नीं मिळाणै रौ कारण पण समझग्यौ हो।
    बीरीं बात्यां सुण्यां पछै म्हैं बींनै म्हारी कुंडळी‘री बांत बताई। बीरै पाघडै सनि हो तो म्हारै घाटडियै मंगळ हो। अबै तो समझौ घणौई ठीक रह्यौ, पंडितजी नै पूरौ भरौसौ कै म्हां दोनां री कुंडळी अेक दूजै सूं घणी चौखी मिळ रह्यी है।
    म्हारै दोनां री कुंडळी रै मेळ सूं ब्याव बड़े धुमधाम सूं होयो। सनि अर मंगळ रौ जोग अैड़ो तो चोखौ अर सुगनीक निकळयौ है कै म्हारै ब्याव रै पछै लोग म्हारै रैवणगत अर हेताळू जीवण नै देख-देख‘र घणी ईरसा कर रह्या है।
    आज म्हारै ब्याव री पैली बरसगांठ माथै अेक छोरै रो बाप हूं। अबै म्हैं अभाग्य री गिणती रै जगह सुभाग्यै री गिणती में आवूं हूं।

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