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सांकळ

चित्र : नवीन अमीन
मां थारै कनै सोने री सांकळ है कांई ?
    कमला आपरौ बटुवो सोफै माथै फैंक‘र कमरै मांय दौड़गी। अजीब बात है, ! मां, काल अठै पड़ी ही नीं। बा हमेस दौफारां कॉलेज सूं आवता ईज पोथ्यां एक कानी फेंक कमरै में दौड़ जावती। सरला आगै बठै बैठी तियार मिलती। बा मोत्यां रो बटुवो पोळा राख्यो है। हाथ रो काम हुवतों सो हुवै पण कमला ने खथावळ ही। गोविन्द वास्तै सूटर सरला जल्दी बणावणो चावती ही पण कमला सूटर बिच्चै मोत्यां रो बटुवो हाथां में घाल दियो।
सरला री नजर कमला माथै पड़ता ईज बा मुळक परी स्वागत कर्यो। कमला ई मुळकी। कनै बैठी मांई मुळकी। हरफ बायरी मुळक तीनं बिच्चै हेत अर लगाव रो लखाव चवड़ै करै ही।
    मां कनै कमला बैठगी अर बोली-मा थनै ठां है कांई ?
    म्हैं थारी मुळकण री अदा माथै फिदा हूँ। म्हैं भगवान सूं हमेेस अरदास करूं कै आगलै भौ में म्हनैं थारौ मिनख बणावै पण थू तो बापू भेळै परणीज‘र सात जलम तांई फेरां में ई बुक हुयग्यी!
    मां बेटी रै मूंडै आगै आंगळी धरती बोली-आवता ईज बिसादी दांई बातां करण लागगी। पैली हाथ-मूंडौ धो परी। रोटी कठैई खार आई है कांई ?
    -थारै बिन कुण घालै। भूख जबरी लागी है। म्हैं तो मस्को मारण लागगी ही।
    - मां माथै ई‘ज मस्कौ ! चाल खीर-पूड़ी अर अचार जिसो आलू दम रो साग करयौ है। जीम ले।
    - कांई केवणौ है थारौ। थूं थूं ई है ! मजो आयग्यो नांव सुणता ईज। जीमतो बगत तो आंगळिया ई खाईजसी। बापू सात जलम तांई बुक करी है तौ म्हनै आगलै भौ में थारो बेटो बणा‘र भगवान जलमा देवै तो ई भलौ हुवै।
    -जा हाथ-मूंडौ धो परी जीम आ। पछै एक चीज बतासूं। सरला बोली तोे कमला रै खटाव कोनी हुयौ। बा जीमण सूं पैली चीज देखण री जिद पकड़‘र बैठगी। छेकड़ सरला अलमारी मांय सूं पैकेट लाय‘र कमला रै हाथां में झिला दियो।
    कमला पैकेट खोल‘र देख्यो तो हरख रै हबोळै सूं उछळ पड़ी- अरे सिल्क री धोती। कुण लाई ? मां ! जद ई तो कैवूं तूं तो म्हारी मां कांई है मिसरी रो कूंजो है। धाकड़ है, म्हारै वास्तै है कांई ?
    -नईं, बारै सूं एक छोकरी आवैला, जिकी पैरसी।
    -साच्ची !
    -हां ....।
    कमला पलंग माथै सूती-सूती मां बाबत सोचै ही। राजेन्द्र राव बोल्यो- मां थारी सारलै घर में गई है। बा कह‘र गई कै थोेड़ी देर में पाछी आ जावूंला। मां तो सगळा नै चोखी लागै अर उणरी सगळी बातां अनोखी हुवै। उण रो रूप, उणरी चतुराई, अर उणरै हेताळू सुभाव, सगळी बातां अजूबी हुवै। कमला ईं बात ने रोजीना देखती आई कै पिताजी मां सूं बैथाग हेत करै है। लोग कैवै कै पिताजी आपरै दफतर में कड़ा रैवै। पिताजी रै नीचै काम-काज करणिया तो इŸाा डरै कै मूंडै सूं हरफ ई नीठ नीकळै। पण पिताजी हमेसा दफतर वाळौ चोळियौ बठैई छोड आवै। कमला मां रै घरै कदई किणी ढाळै रो खिंचाव कोनी देख्यौ। दोनूवां में इŸाी पटै कै दिनूगै सुणी उण रै माथै माथै लाडा-कोडा किणी हाथ रौ लखाव हुवतां ईज हरफ फूटतो ‘मां’।
    कमला पसवाड़ौ फेरती पूछती-
    किŸाी बजी है ?
    सरला उणा कनै बैठगी। क्यूं अै म्है कांई घणै दिनां रै बारै रह‘र आई हूं जिकौ तूं म्हारै सूं ईया लमूटै है।
    -म्हैं थनै कठैई बारै जावण ई कोनी देवां।
    -अर तूं सासरै जावैला, जद ?
    - जावां ई कोनी म्हैं तो !
    ‘घर जवाई लै आवूंला, बस।’
    -ना भाई, म्है तो थांनै दोवां नै घर सूं सीख ईज देवूंला। रसाई रै काम-काज में सागै हाथ लगा।   
    -मैवेरी खिचड़ी ....। सरला बोली।
    कमला पलंग सूं झठ उठी-बाप रै ! म्है तो जाबक ई पांतरगी।
    सरला रसोई में जावती-जावती बीच में ई खड़ी हुयगी- थारै कांई आफत तो आयगी।
    आफत कोनी तूंतक तूंतक तूतक तूतीया। कमला पलंग पर पोज बणा‘र मस्ती करण लागी।
    -फालतू रा तनका करै। थारी बातां में नीं तो कठैई धड़ हुवै अर नीं कठैई सिर।
    - ना हुवौ भलाई पण पग तो हुवै। बोलो चतर कामिणी, इण आडी रौ अरथ बतावै उण नै......
    तू तनका करती रैवै। म्है तो आ चाली।
    सरला हड़बड़ार रसोई कानी जावण लागी तो कमला दौड़ती आयी अर आडौ हाथ कर‘र आगै खड़ी हुयगी।
    सरला झट सूं कमला रौ कान पकड़ लियौ-क्यों कणै सूं बड़-बड़ करै है अबै बोल ? म्हारै तो काम है। अर तूं भूलगी थारी भाइलियां आवणवाळी है !
    -अर म्है तो साचांणी भूलगी ही। अरे हां म्हारी साकंळ कठै है।
    -किसी ?
    -थूं दी जिकी।
    -थारै कनै ही। थूं सभांळती।
    -तू जो देनी मां, म्है कालै अठै ....कैवती थकां कमला मां रै आगै नाचण लागगी। मां बोली- लाध जासी रै बाबा लाध जासी। खटाव राख। आ थारी बेटी घूमर घालती जलमी ही कांई। घणी छेड़ ना रिसाणी हुय जावैला। अर साचांणी रिसाणी हुयगी। बा बारी रै बारै मीट जमा‘र देखण लागी।
    -कांई हुग्यो थारै मां। ईयां एकाएक चुप कियां हुयगी। तू म्हारी बात कोनी सुणी कांई ? जाओ थारै सूं कोनी बोलूं। थांसू कट्टा हूँ।
    सरला मुळक‘र कमला रौ हाथ पकड़यौ। म्हारै कनै सांकळ पड़ी है, कमला दावै-जठै ई राखर ना भूल्या कर।
    -थारै कनै है, साची। थनै कठै लाधी ?
    -म्है तो सांकळ अलमारी में देखी ही।
    -काल लॉकर सूं लाई ही कांई ? चाल अबै काम में सायरौ लगवा दे। अर पछै सिंझ्यां रोज दांई खूटगी।
    घर रै अंधारै री परतांनै चीरती सांकळ री चमक उणरी आंख्यां रै आगै चमकती नाचण लागी। जाणै जीभनै लपलपाती फुफकार मारती छिड़यौडी नागण सिरकती सामनै आ रैयी है। वा घबराय‘र बैठयी हुयगी। बा आंख्या नै बंद करयोड़ी हांफती-हांफती बैठी रैयी।
    कई बरस गुजरग्या उण बातां नै ? हां पूरा बाईस बरस। कमला रै चिलम चित्यां ही बरसां रै परदै नै फाड़‘र सांकळ एक धूंधळी चमक उण री आंख्या रै आगै नाचण लागगी।
    ई घर में परणीज‘र आवतै ई बापू उण रै हाथां में घर री चाबियां अर सांकळ सौंप दीनी ही। माथै रै ऊपर हेत सूं हाथ फैरते हुवै बापू उण नै बैठा‘र कह्यौ हौ।
    -देख बेटी सरला गोविन्द री मां नै मरयां घणा बरस गुजरग्या है। म्है बाप बेटा दोनूं ई, सूनै घर में घणी मुसिबतां उठाई है। अबै तूं ईं घर नै कुळ बहू आळै दांई अर सांकळ री चमक ज्यूं चमका दे बेटी। तू म्हारै घर री खाली बीनणी ई कोनी है, म्हारै घर री लिछमी है, लिछमी।
    दोन्यां री आंख्यां आंसूआं सूं डबडबाईजग्यी। घर री उमस, वात्सल्य इस्यौ हेत-बीनै आजतंईं कदेई नी मिल्यो हो। वा धीरै-धीरै बड़ी होवती गई ज्यूं-ज्यूं समझण लागी। उण रै नाम सूं बराबर महिनै-महिनै रूपिया आवता पण रूपिया भेजण आळौ कुण है-ईं बात नै बां कदैई नीं जाण सकी। बा कईबार आपरी सिस्टरनै आपरै बारै में उणनै जलम दैणै आळै भावीतर रै बारै में, पूछण‘री कोसिस करती। सिस्टर बड़े हेत सूं कैंवती-
    अबै तूं जाण‘र कांई करैला सरला ? दरखत कठैई तो उगै अर उणरी कुण साळ संभाळ करै-इण‘रौ कोई खास महत्व कोनी हुया करै। फूल‘री पिछाण उणरी सुगन्ध सूं हुया करै है। तूं जिण जग्या जासी बठै महक बिखरती रैसी।
    सरला घणी समझदार ही। लांबी छुट्टियां में बोर्डिंग सूनौ-सूनौ लागतौ। सरला आपरी साथणियां ने बंद कमरै में ऊभी-ऊभी ताकती-लांबी अर सूनी परसाल मां ऊभी रैवती। नीं तो उण रै कोई हो अर नीं उण नै कठैई जावणौ हो। बा आपरै कमरै में सिस्टर कनै सोया उठयां करती ही। बा आपरै अेकलेपण नीं नुवीं-नुवी कळावां सूं भर देवतीं। बीरैं मन मे कदे-कदे तो दुःख‘री हूक-सी उठती। बा भीतर सूं अर बारै सूं घणी दूःखी हो जावती। बा सोचती इण संसार में म्हारौ कोई नीं है। अर सायद कोई हुवैला तो बीरी जरूरत नीं हुवैला। ऐड़ा उण रै मन में भांत-भांत‘र विचार आंवता। अे विचार बीरै नाजुक हिवड़ै में लोई-रस्सी सूं भरयोड़ै दुखणियै दई दुखता अर जद दुखणियो फूट जायां करै है अर उण मांय सूं लोई-रस्सी निकळै जणा पीड़ा ई मिटै और कीं मन में शांति भी। उण तरै बींरौ मन तो एक अथक पीड़ा सूं भर जाया करतौ हो।
    इण तरै बां अकेलेपण रै सूनैपण में दिन काट री ही-
    गोविन्द बींरे हिवड़ै में आयौ अर उण रौ संसार बदळग्यौ। दरखत, जीव-जीनावर, आभै रौ सिखर। इयै संसार में अबै अकेली नीं ही। इण सगळां सूंईं बिछड़तै ई बां छोटे टबार ज्यूं रोवण नै बैठ जावती। गोविन्द मुळक पड़तौ। सरला रिसाणी हो जावती-
    तूं नीं समझै गोविन्द। अकेलोपण किसोक डरावणौ हुवै ? म्हैं बींनै भोग्यौ है। जै तूं म्हारी जिन्दगी सूं चल्यौ जावै तो म्है जीवती नीं रै सकूंला।
    -म्है थारी जिन्दगी सूं चल्यो जाऊं ? बावळी !
    सरला गोविन्द रै घरां आई तो फेर कदेई पाछी नीं जा सकी। जाणै बिरखा री पियास टप-टप टपकती बूंदा स्यूं आग बण‘र धधक उठी। थोड़ा बगत पछै उणी घर में मालकण बण‘र रैवण लागी जणा उण नै लाग्यौ के भगवान सुख रौ छळकतौ पियालौ उणरै हाथ में पकड़ा दियौ। उण पियालै ने होठा स्यूं लगा‘र उण‘री इमरत मई धारा ने बा छकर पीवती रैयी।
    बाप रौ ममता सूं भरयौड़ौ हेत अर गोविन्द रो अथाग सनेव, घर रौ लगाव अर ..... अर कमला रौ जलमणौ।
    जिण अंधेरै कमरै मांय अकेली जिंदगी ने दूर सूती जिण अणूतै ससांर रौ दरसण कर रैई ही उण संसार री वां अबै मालकण बणगी ही। बापू अर गोविन्द उण नै ईŸाा चांवता हां के कदास बां डर सूं कांपण लागती। कठैई आ हेत‘री बिरखा थम नीं जावै अर कठैई हाथ आयोड़ौ ओ सुख रौ खजानौ गुम नीं जावै ..... आगै बा सोच ही नीं सकी।
    एक बार बींनै बापू री दियौड़ी सांकळ याद आई अर घर मांय खेलती-कूदती कमला नै पैराय दी। घर बींरी चमक‘रै उजालै स्यूं चमकण लाग्यौ। एक दो दिन तो कमला घणी खुस रैयी। बापू खुद कमला रौ हाथ पकड़‘र नचाता-कुदावतां रैया। कमला नै राखण तांई बापूजी तेरह-चवदह बरसी‘री एक मधुड़ी नाम‘री छोरी नै राखली। बा जोर-जोर सूं हंसती अर ताळयां बजावती।
    कमला ने सांकळ घणी चोखी लागी। भारी अर लांबी सांकळ हुवणै रै कारण बा रमती जणा बींरै हाथां सूं अड़ती अर जमीन सूं रगड़ीजती जणा बां सांकळ नै गळै सूं निकाल‘र आपरै रेशमी तकिये रै नीचै राख देवती। बापूजी मुळक‘र कैवता-कमला सांकळ घणी सुभ अर सुगन आळी है। गोविन्द‘री मां ने ई घणी चोखी लागती। एक दिन सांकळ गुमगी ही। सांकळ ने घणी जोई। बापूजी सगळै घर नै उथळ-पुथळ कर नाख्यौ पण सांकळ नीं मिली। कमला आंख्यां रौ-रौ‘र लाल कर ली। बा नी तो दुध पियौ अर नी नींद लेई। दूजी सांकळ बजार सूं खरीद‘र लावण री गोविन्द री बा बात ई सुणी कोनी। बस म्हनै म्हारी सागण ई सांकळ ल्यार दो। बा आइज एक रट लगायोड़ी राखी।
    सांकळ आखो घर छाण मार्यौ तौई नी मिली। जणा सरला ने लख्यौ के कोई चोर‘र तो नीं लेग्यो है ? मधुड़ी सिवाय बारलौ मिनख घर में आयौ ई कणा हो ? मधुड़ी ने ई आ सांकळ घणी चौखी लागती ही। अेक बार तो कमला घड़ी-खंड खातर गळै माय सूं खोली जद बींनैं मधुड़ी पहरी ही। कमला जोर-जोर सूं रोवण लागगी तो बा बींनैं पाछी खोल दी। सरला रै मन में बात घर करगी-जरूर ई मधुड़ी सांकळ लेगी है।
    एक दिन बा मधुड़ी नै केयौ-
    देख मधुड़ी ! थांसू कोई भूल होयगी हुवै तो कीं हरज री बात नीं है। अबार तो घर री बात घर में ई है। छानै-सीक सांकळ पाछी दे दे। म्है थनै कीं नीं केऊँ।
    ‘मधुड़ी कीं नीं बोली अर चुपचाप आंख्यां फाड़-फाड़‘र बींनै देखती रई।
    एकाएक पकड़ी गई, इण खातर बा डरगी। सरला आ समझ‘र बोली।
    थनै डरण‘री कोई बात कोनी है। भूल सूं लेयगी हुवैला। बा सांकळ बौत भारी है। तूं बीनै बेच तो नीं दी है न !
    मधुड़ी नीचै बैठी-बैठी बस्का भरती रोवण लागी-
    गोविन्द अर बापूजी झट सूं रसोई में आया, कांई बात है सरला ? अरे मधुड़ी तूं रोवै है। तूं पगोथियां सूं पड़गी कांई ? थारै लागी तो कोनी।
    ‘नां बापूजी। कमला री सांकळ मधुड़ी कनै है, इनै पाछीं सांकळ ला‘र देवण तांई समझाऊँ।
    छी ! छी ! छी ! मधुड़ी म्है थनै घर री बेटी जियां समझ‘र राखी ही अर तू‘ई चोरयां कर ? आ बात तो आछी कोनी ! चाल अबै बा सांकळ पाछी लाय दे। देख आ कमला किŸाी अणमणी हुई है।
    मधुड़ी रौ नीं तो रोवणौ हुयौ अर नीं बा माथौ ऊंचौ कर ऊपर देख सकी। बा तो जोर-जोर सूं बोकरड़ा मारणा सारू कर दिया। जणा सरला बीं पर चढ़गी।
    तू तो इयां रौवण नै बैठगी है के जियां कोई म्है थनै घर‘रा मिलर मारी हां। तूं बियां ढौंग कर रैयी हैं। थनै कैय तो दियौ के म्हैं थनैं कीं नीं कैवांला।
    मधुड़ी आपरी घघरी सूं मूंडौ ढक‘र डूस्का भरण लागगी।
    अै नाटक मधुड़ी‘रा देख‘र गोविन्द नै घणौ गुस्सौ आयग्यौ। आ कांई बलाय आयगी। सरला लायण कैय रई है, म्है थनै कीं नीं कैऊंलां तोई आ तमासौ बणाय लियौ है।
    सरला बोली-कांई कैयौ ई नीं है तो पण तमासौ बणा दियौ है। तू सीधी-सीधी सांकळ लार दे दियै नीं जणा पछै पुलीस मंे ज्यासी जणा सगळी ठा पड़ ज्यासी, समझी नीं ?
    बापूजी बीच में ई बोल्या, नां, नां बेटा, चाहे जियां हुवौ आखिर तो आ ई घर री बेटी है। तू सरला पुलिस रौ नाम मत ले। पहलां सांकळ इरै खनै सूं ले ले, फेर कोई दूसरी भरोसे आळी नौकराणी राख लीज्यै।
    आखिर में सरला रीस में आ परी‘र मधुड़ी रौ बांवड़ौ पकड़‘र उण री मां कनै लेगी। उण‘री मां नै मधुड़ी रै लखणा‘रा हाल सुणाया। बींरी मां मधुड़ी नै घणौई समझायौ, पर बींरौ नाम ई मधुड़ी हो। बां रो-रो‘र बसका फाटण लागी पर सांकळ कठै राख्यौड़ी है, बा पट्ठी नीं बताई तो नीं बताई।
    दूजै दिन सरला नै ठा पड़ी के मधुड़ी नै उण‘री मां घणी मारी। पण मधुड़ी घणी जिद्दण निकळी। बा सांकळ कठै लुकाई आ बात को बताई कोनीं। उण नै बास आळा सगळा चौटी कैय‘र बतलावण लाग्या। मधुड़ी‘री सारी साथण्यां उण सूं बोलणौ बंद कर दियौ।
    कई दिनां पछै मधुड़ी‘री मां आई अर रौवती-रौवती घणी माफ्यां मांगी। भाभीजी, आपरौ जिसौ घर कठै मिलण आळौ है ? आ अभागण ई आपरै हाथां सूं आपरी इज्जत दी है। अबै इंरौ बिसवास कुण करैला। कुण इंनै झालै‘ला ? सेठजी तो इण रै ब्याव तंई रकम, कपड़ा-लता रौ हुंकारौ भरियौ हो, पण अबै तो .....
    बीरै सगपण‘री बात्यां चालती ही, बीनै छोरौ देखण तंई आयोड़ौ हो, पण-पड़ौस में ई बात री ठा पड़गी ही ईं कारण सूं .......
    मधुड़ी‘री मां माथौ कूट-कूट‘र रोवण लागी। थोड़ी देर पछै ओढणै‘रै पलै सूं कंई नोट, कंई‘क रैजकी सरला रै आगै राख दी।
    भाभी जी थांरी सांकळ तो म्हैं नीं दे सकूं। म्हारै कनै और तो कीं नीं है पण अे पईसा, पाई-पाई जोड़‘र भैळा करोड़ा है जिका थे ले लो। थै मना मत करिया।
    म्हारौ अबै थारै घरां सूं अंजळ-पाणी चूकग्यौ।
    नां-नां तू बावळी हुई है कांई ? म्हनैं ई रूपिया री जरूरत नीं है। अगर थनै मधुड़ी सांकळ बता देवै तो कदैई बा पाछी दे जाइजै। बा म्हारी सासूजी री हाथ री निसाणी है।
    अगर थारी बा म्हनै सांकळ बता देवैला अर म्हनै मिल जावै‘ला तो थांनै जरूर दे जाऊंला। अे रूपिया तो थे राखलौ, थोड़ौ-घणौ म्हारै माथै ऊपर सूं भार तो कम हुवै। कमला बाई नै कोई दूजी सांकळ ....
    नां, नां तूं थारा अे रूपिया पाछा ले जा। बा आंसू सूं भरौड़ी आंख्यां ओढणै रै पलै सूं पूंछती उठी अर आपरै घर रै वास्तै रवाना हुयगी।
    आं बातां नै कई बरस बीतग्या। कमला परणीज‘र आपरै सासरै गई। घर सूनौ-सूनौ लागण लाग्यौ। मा अर बापू घर में अकेला ई रैंवता। अेक नौकराणी अधेड़ उमर री राख्यौड़ी ही, बा घर रौ सारौ धन्धो करती। कमला री सांकळ आळी बात तो सगळा भूलग्या। पर सरला रै कानां में कणैई-कणैई सबद गूंजता। सरला रौ ध्यान कणैई मतैई असली सोने री भारी-भारी सांकळ खानी जावतौ परो। बा सांकळ म्हारै बापूजी री पेलड़ी भेंट ही। मधुड़ी तो गजब री छोरी निकळी। बा मार खाय‘र अधमरी हुयगी, पण सांकळ नीं बताई-सो नीं बताई।
    दीवाळी रा दिन हा। ईं मौके सगळा जणा आप-आपरै घर री सफाई करण में लागोड़ा हा। सरला ई आपरै घर री सफाई नई नौकराणी कनैऊं करा रैयी ही। बा आपरै कमरै में पछीती रै ऊपर सूं सारा बिस्तर-तकिया उतरवा‘र सफाई कर‘र पाछौ सिगळौ समान धरावती ही। नौकराणी रै हाथां सूं बिस्तर अर तकिया ऊपर पछीती पर पाछा रखण तांईं हाथां में लिया। बीरैं हाथ में सूं एक तकियौ निकळ‘र नीचै पड़ग्यौ। तकियो नीचे पड़तां ई बीरैं मांय सूं बा सोने री सांकळ पड़गी। बी सांकळ ने देख‘र बा नई नौकराणी आपरी सेठाणी कनै लेयगी। सरला बां सांकळ देख‘र हकीबकी होगी। बी‘री पगां आळी जमीन सांकळ नै देख‘र खिसकगी।
    सरला नौकराणी नै पूछयौ, आ सांकळ कठै सूं लाई। नौकराणी कैयौ के म्है जद अे बिस्तर तकिया राख रैयी ही जणा ओ तकियौ नीचै पड़ग्यौ। इण तकिये मांय सूं आ सांकळ बारै आर म्हारै पगां में पड़गी।
    अर अचाणचक सरला रै आंख्यां रै सामनै सांकळ रा चितराम घूमण लागग्या।
    बीरै मूंडै सूं जोर‘री एक चीख निकळी अर सरला खड़ी-खड़ी देखती रैयग्यी।
    मधुड़ी री रो रो‘र कर्यौड़ी आंख्यां अब बींरी आखरी निजर .....
    सरला बड़ी मुश्किल सूं सांकळ ने बींरै हाथ सूं ले सकी। बींरौ हाथ बौत भारी-भारी हुयगो। कोई री निजर नीं पड़ सकै, बिंयां कमला बीं सांकळ नै आपरै तकियै री खोळी में लुकाय दी ही।
    घणै दिनां तांई सोच-बिचार कर‘र हिम्मत कर‘र सरला मधुड़ी री मां कनै घरां गई। सरला ने सामने सूं आवती देख‘र बा डरगी। सरला बी रै कनै पूगी अर बा हिचकिचावती मधुड़ी रा हालचाल पूछण लागी।
    अबै थै सेठाणी जी मधुड़ी रा हालचाल क्यूं पूछौ हो ? थे तो मोटे कालजे आळा हो अर थे घणा समझदार हो जणा थारौ पेट मोटो कर लियौ। नई जणां तो पुलिस में रिपोर्ट करवा‘र आंख्यां बारै निकाळ देवता, पुलिस किण नै छोड़े है। बा म्हारी मधुड़ी तो बेकारी छोरी निकळगी। एक दिन बा पड़ौसण री बैन रै गळै रो हारियौ ई उठा लाई ही। बींनै म्है घणी ई समझाई। पण बां मुई-मरजावणी मूंडे मांय मूंग घाल‘र बैठगी। थारै आळी सांकळ चोरी ही नीं जियां बा तो रोवण लागी। पण बा हारियौ बतायौ कोनी के कठै लुकायौ है।
    फेरूं........फेरूं.....सरला रै गळै में सबद अटकण लाग्या।
    थांरी सांकळ अर हारियौ दोनूं कोनी मिल्या। बा सोखीनाई री मां है, बेच-बेचा‘र खा-खूटाया हुवैला, बा नकटी सनिमा देख लिया हुवैला, सेठाणी जी !
    अबै......अबै मधुड़ी कठै है।   
    ‘मधुड़ी ! सेठाणीजी इस्या खौटा काम करै जिका नै भगवान सुखी थोड़ा राख सकै है। म्हैं उणी री मां हूं नी। म्हारौ काळजौ घणोई बळै है। पण म्हारौ बस नीं चालै। म्हारै भाग में ओई लिख्योड़ौ है। म्हैं पछै कांई करती ? आपारै आस-पास रै गांवां में झली कोनी, सांकळ अर हारियै आळी बातां सिगळां नै ठा पड़गी। सौ-सवा सौ कोस पर सहर है, बठै एक गरीब घर ई मिल्यौ। पछै उणां नै ई सगळी बातां रो पतो चालग्यौ। लोग कैवै है के बठै बापड़ी नारैल री जोट्यां गूंथण रो काम धन्धो करै है। अरे .....आप बैठो तो सही, सेठाणी जी। कमला बाई‘रा कांई हाल-चाल है ! ब्याह तो कर दियौ हुवैला।
    सरला चार-पांच धोत्यां अर थोड़ा‘क रूपिया मधुड़ी री मां रै आगै राख्या। मूंडै सूं कंई केवणौ चांवती ही पण बींरौ गळौ भरीजग्यो। बां मूंडो नीचे कर‘र जावण लागी। बींनै जावती देख‘र मधुड़ी री मां नै उण रै हिवड़ै री मार घणौ दुःखी कर दियौ।
    सरला जावती केयौ के अै .....अै सारी धोत्यां अर रूपिया मधु नै भेज दीज्यो।
    मधुड़ी री मां ओ बरताव देख‘र अचूंबै में पड़गी। कह्यौ अर‘र सेठाणी जी, उण रै तांई इतां कांई दिया हो। थे लुगाई कांई हो, एकदम देवी रो रूप हो, भाभीजी।
    सरला खथावळ सूं दरवाजे री थळकण सूं अेक पग बारै राख्यौ के लारै सूं गोफणियै री मार ज्यूं देवी सबद उण रै कनफटी पर चड़ाक देणी-सी लागी। बां घणी मुस्किल सूं घरां पूगी।
    सांकळ तकियै री खोळी में लुकाय दी ही। बां बातां नै किता बरस बीतगा। कदेई-कदास ईं बात री यात तेज पळके सूं आंख्यां पर डरावणो पळको नाखै।
    सरला अण बातां, रौ सोच-विचार करती घरां पूगी तो घर में कमला अर बीरां टाबर आंगणै में खेले हा।
    कमला मा नै देख‘र पूछ्यौ, मा थे कठै गया हा। बा बोली, म्हैं मधुड़ी री मां कनै गई।
    बीरै कनै क्यूं गई ही।
    बा छानै-मानै उठ‘र कमरै में गई। कमरे सूं बारै आई जणां बीरैं हाथां में बा ई पळपळाट करती सोने री सांकळ नै देख‘र कैयौ, आ कठै लाधी। सरला कैयौ के थारै तकिये री खोळी में मिली। आ बात सुण‘र कमला अर सरला री धरती खिसकगी। दोनूं जणियां एक दूजै रै मूंडै सामै ताकती रैयी।

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